बुधवार, 15 अगस्त 2018

स्वतंत्रता के सेनानी, किसानों के मसीहा, बिजौलिया के गांधी विजय सिंह पथिक

स्वतंत्रता के सैनानी ,किसानों के मसीहा, बिजौलिया के गांधी विजय सिंह पथिक

( नन्दलाल गुर्जर )

“यश वैभव सुख की चाह नहीं, परवाह नहीं जीवन न रहे।

यदि इच्छा है, यह है जग में स्वेच्छाचार दमन न रहे।।

इन पंक्तियों के लेखक राजस्थान केसरी स्व. विजय सिंह पथिक ने बिजौलिया और बेगूं के किसान आंदोलन का सफल नेतृत्व कर राजस्थान में ही नहीं बल्कि देशभर में जन जागृति की लहर पैदा की। विजय सिंह पथिक का जन्म 27 फरवरी, 1873 की बुलन्दशहर जिले के गुठावलीकलां गांव में हुआ था। उनके दादा इन्द्र सिंह गुर्जर बुलन्दशहर स्थित मालागढ़ रियासत के दीवान (प्रधानमंत्री) थे। सन् 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में पथिक के दादा अंग्रेजों से लड़ते हुये वीरगति को प्राप्त हुये। विजय सिंह पथिक के पिता हमीर सिंह गुर्जर को भी क्रान्ति में भाग लेने के आरोप में सरकार ने गिरफ्तार किया था।

पथिक पर उनकी माँ कमला कंवर और परिवार की क्रान्तिकारी व देशभक्ति से परिपूर्ण पृष्ठभूमि का बहुत गहरा असर पड़ा। युवावस्था में पथिक जी का सम्पर्क रास बिहारी और सचिन सान्याल आदि क्रान्तिकारियों से हुआ। 1912 में ब्रिटिश सरकार ने भारत की राजधानी कलकत्ता से हटाकर दिल्ली लाने का निर्णय किया। इस अवसर पर भारत के गवर्नर जनरल लार्ड हाडिंग ने दिल्ली प्रवेश करने के लिए एक शानदार जुलूस का आयोजन किया। गवर्नर जनरल लार्ड हाडिंग पर दिल्ली प्रवेश के समय विजय सिंह पथिक ने अन्य क्रान्तिकारियों के साथ जुलूस पर बम फेंक कर लार्ड हार्डिग को मारने की कोशिश की। रास बिहारी बोस, जोरावर सिंह बारहठ, प्रताप सिंह बारहठ, विजय सिंह पथिक  व अन्य सभी सम्बन्धित क्रान्तिकारी अग्रेजो के हाथ नहीं आये और वे फरार हो गए।

विजय सिंह पथिक का मूल नाम भूप सिंह गुर्जर था। सन् 1915 में रास बिहारी बोस के नेतृत्व में लाहौर में क्रान्तिकारियों ने निर्णय लिया कि 21 फरवरी को देश के विभिन्न स्थानों 1857 की क्रान्ति की तर्ज पर सशस्त्र विद्रोह किया जाए। भारतीय इतिहास में इसे गदर आन्दोलन कहते है। योजना यह थी कि एक तरफ तो भारतीय ब्रिटिश सेना को विद्रोह के लिए उकसाय जाये दूसरी तरफ देशी राजाओं और उनकी सेनाओं का विद्रोह में सहयोग प्राप्त किया जाए। राजस्थान में इस क्रान्ति को संचालित करने का दायित्व विजय सिंह पथिक को सौंपा गया। उस समय पथिक फिरोजपुर षडयंत्र केस में फरार थे और खरवा (राजस्थान) में गोपाल सिंह खरवा के पास रह रहे थे। दोनो ने मिलकर दो हजार युवकों का दल तैयार किया और तीस हजार से अधिक बन्दूकें एकत्र की। दुर्भाग्य से अंग्रेजी सरकार पर क्रान्तिकारियों की देशव्यापी योजना का भेद खुल गया। देश भर में क्रान्तिकारयों को समय से पूर्व पकड़ लिया गया। विजय सिंह पथिक और गोपाल सिंह ने गोला बारूद्व भूमिगत कर दिया और सैनिकों को बिखेर दिया गया।

कुछ ही दिनों बाद अजमेर के अंग्रेज कमिश्नर ने पांच सौ सैनिकों के साथ विजय सिंह पथिक और गोपाल सिंह को खरवा के जंगलों से गिरफ्तार कर लिया और टाडगढ़ के किले में नजरबंद कर दिया गया। उन्हीं दिनों लाहौर षडयंत्र केस में पथिक का नाम उभरा और उन्हें लाहौर ले जाने के आदेश हुए। किसी तरह यह खबर पथिक जी को मिल गई और वो टाडगढ़ के किले से फरार हो गए।

गिरफ्तारी से बचने के लिए विजय सिंह पथिक ने अपना वेश राजस्थानी जैसा बना लिया और चित्तौडगढ़ क्षेत्र में रहने लगे। बिजौलिया से आये एक साधु सीताराम दास विजय सिंह पथिक से बहुत प्रभावित हुए और उन्होनें विजय सिंह पथिक को बिजौलिया आन्दोलन का नेतृत्व सम्भालने को आमत्रिंत किया। बिजौलिया उदयपुर रियासत में एक ठिकाना था। जहाॅ किसानों से भारी मात्रा में लाग बाग वसूली जाती थी और किसानों की दशा अति दयनीय  थी। पथिक 1916 में बिजौलिया पहुच गए और उन्हौनें आन्दोलन की कमान अपने हाथों में सम्भाल ली। माणिक्य लाल वर्मा ने विजय सिंह पथिक से प्रभावित होकर बिजौलिया ठिकाने की सेवा से त्यागपत्र दे दिया और आन्दोलन में कूद पडें।

1916 में विजय सिंह पथिक ने ऊपरमाल किसान पंचायत बोर्ड नाम से एक किसान संगठन का गठन किया। प्रत्येक गाॅव में किसान पंचायत की शाखाएॅ खोली गई। किसानों की मुख्य मांगे भूमि कर, अधिभारों एवं बेगार से सम्बन्धित थी। किसानों से 84 प्रकार के कर वसूले जाते थे। इसके अतिरिक्त युद्व कोष कर भी एक अहम मुददा था, एक अन्य मुददा साहूकारों से सम्बन्धित था जो कि जमीदारों के सहयोग और संरक्षण से किसानों को निरन्तर लूट रहे थे। पंचायत ने भूमि कर न देने का निर्णय लिया गया। किसान वास्तव में 1917 की रूसी क्रान्ति की सफलता से उत्साहित थे, पथिक ने उनके बीच रूस में श्रमिकों और किसानों का शासन स्थापित होने के समाचार को खूब प्रचारित किया था।

विजय सिंह पथिक ने कानपुर से प्रकाशित गणेश शंकर विद्यार्थी द्वारा सम्पादित पत्र प्रताप के माध्यम से बिजौलिया के किसान आन्दोलन को समूचे देश में चर्चा का विषय बना दिया। सन् 1919 में अमृतसर कांग्रेस में पथिक के प्रयत्न से लोकमान्य तिलक ने बिजौलिया सम्बन्धी प्रस्ताव रखा। पथिक ने बम्बई जाकर किसानों की करूण गाथा महात्मा गांधी को सुनाई। गांधी जी ने वचन दिया कि यदि मेवाड़ सरकार ने न्याय नहीं किया तो वह स्वयं बिजौलिया सत्याग्रह का संचालन करेगें। महात्मा गांधी ने किसानों की शिकायत दूर करने के लिए एक पत्र महाराणा को लिखा, पर कोई हल नहीं निकला। पथिक बम्बई यात्रा के समय, गांधी जी की पहल पर, यह निश्चय किया गया कि वर्धा से ‘‘राजस्थान केसरी’’ नामक पत्र निकाला जाए। पत्र सारे देश में लोकप्रिय हो गया, परन्तु पथिक जी का जमनालाल बजाज की विचारधारा से मेल नहीं खाया और वे वर्धा छोड़कर अजमेर चले गए।

सन् 1920 में पथिक जी के प्रयत्नों से अजमेर में ‘‘राजस्थान सेवा संघ’’ की स्थापना हुई। शीघ्र ही इस संस्था की शाखाएॅ पूरे प्रदेश में खुल गई। इस संस्था ने राजस्थान में कई जन आन्दोलनों का संचालन किया। अजमेर से ही विजय सिंह पथिक ने एक नया पत्र ‘‘नवीन राजस्थान’’ प्रकाशित किया। सन् 1920 में पथिक जी अपने साथियों के साथ नागपुर अधिवेशन में शामिल हुए और बिजौलिया के किसानों की दुर्दशा और देशी राजाओं की निरंकुशता को दर्शाती हुई एक प्रदर्शनी का आयोजन किया। महात्मा गांधी विजय सिंह पथिक  के बिजौलिया आन्दोलन से बहुत प्रभावित हुए।

कांग्रेस और गांधी जी यह समझने में असफल रहें कि सामन्तवाद साम्राज्यवाद का ही एक स्तम्भ है और ब्रिटिश साम्राज्यवाद के विनाश के लिए साम्राज्यवाद विरोधी संघर्ष के साथ-साथ सामन्तवाद विरोधी संघर्ष आवश्यक है। गांधी जी ने अहमदाबाद अधिवेशन में बिजौलिया के किसानों को हिजरत (क्षेत्र छोड़ देने) की सलाह दी। पथिक ने इसे अपनाने से यह कहकर इनकार कर दिया कि यह तो केवल हिजड़ो के लिए ही उचित है, पुरूषों के लिए नहीं।

सन् 1921 के आते-आते पथिक ने राजस्थान सेवा संघ के माध्यम से बेगू, पारसोली, भिन्डर, बासी और उदयपुर में शक्तिशाली आन्दोलन किए। बिजौलिया आन्दोलन अन्य क्षेत्र के किसानों के लिए प्रेरणा स्रोत बन गया था। ऐसा लगने लगा मानो राजस्थान में किसान आन्दोलन की लहर चल पडी है। इससे ब्रिटिश सरकार डर गई। इस आन्दोलन में उसे बोल्शेविक आन्दोलन की प्रतिछाया दिखाई देने लगी। दूसरी ओर कांग्रेस के असहयोग आन्दोलन शुरू करने से भी सरकार को स्थिति और बिगड़ने की भी आशंका होने लगी। अंतत सरकार ने राजस्थान के ए0 जी0 जी0 हालैण्ड को ऊपरमाल किसान पंचायत बोर्ड और राजस्थान सेवा संघ से बातचीत करने के लिए नियुक्त किया। शीघ्र ही दोनो पक्षों में समझौता हो गया। किसानों की अनेक मांगे मान ली गई। चैरासी में से पैंतीस लागतें माफ कर दी गई। जुल्मी कारिन्दे बर्खास्त कर दिए गए। किसानों की अपूर्व विजय हुई। इस बीच में बेगू में आन्दोलन तीव्र हो गया। मेवाड सरकार ने विजय सिंह पथिक को गिरफ्तार कर लिया और उन्हें पांच वर्ष की सजा सुना दी गई। लम्बे अरसे की केद के बाद पथिक अप्रैल 1927 को रिहा किए गए।

आजादी के अवसर पर प्रतिज्ञा लेते समय झंडाभिवादन पर जो झंडा गान सर्वत्र गाया गया उन्होंने स्वंय बनाया था, उन पंक्तियों को कौन नहीं जानता? ” प्राण मित्रो भले ही गवाना, पर झंडा ये निचे नहीं झुकाना”। पथिक जीवनपर्यन्त निःस्वार्थ भाव से देश सेवार में जुटे रहें। भारत माता का यह महान सपूत 28 मई, 1954 में चिर निद्रा में सो गया।

पथिक की देशभक्ति निःस्वार्थ थी और जब वह मरे उनके पास सम्पत्ति के नाम पर कुछ नहीं था, जबकि तत्कालीन सरकार के कई मंत्री उनके राजनैतिक शिष्य थे। राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री शिवचरण माधुर ने पथिक जी का वर्णन राजस्थान की जागृति के अग्रदूत महान क्रान्तिकारी के रूप में किया। विजय सिंह पथिक के नेतृत्व में संचालित हुए बिजौलिया आन्दोलन को इतिहासकार देश का पहला किसान सत्याग्रह मानते है। उनकी प्रतिज्ञा के कुछ अंश यहा उल्लेखित है:

“रेशम समझ कर रेजियों को सदा अपनाएंगे।

वे भी न यदि हमको मिलेगी,भस्म देह रमाएँगे।।

सूखे चने खाने पड़े, पकवान गिनकर खाएंगे।

आसन न होगा, घास पत्ते या पयाल बिछाएंगे।।

क्या विघ्न के राक्षस हमें भय का प्रपंच दिखाएंगे।

हम देश हित में यमराज से भी मुदित हाथ मिलाएंगे।।

तिल तिल अगर कटना पड़े, निर्भय खड़े कट जाएंगे।

पर वीर राजस्थान का हर्गिज न नाम डुबाएंगे।।”

इनका कहना  है –

“महान क्रांतिकारी विजय सिंह पथिक की चार पीढ़ियों ने राष्ट्र सेवा एवं राष्ट्र की आजादी हितार्थ लगातार बलिदान देकर अपने वंश का अंतिम चिराग तक शहीद कर दिया। पथिक जी खुद आजाद भारत में पूंजीवादी, अवसरवादी एवं वंशानुगत राजनीति में तिल तिल कर शहीद हुए। वर्तमान आरएसएस विजय सिंह पथिक के राजस्थान सेवा संघ का ही प्रारूप है। पथिक ने ही ऊपरमाल क्षेत्र में आजादी एवं पंचायत राज की नींव रखी थी।”

-महावीर पोसवाल
राष्ट्रीय अध्यक्ष- पथिक सेना

“ब्रिटिश भारत में तीन बड़े किसान आंदोलन हुए। चंपारण, बारडोली और बिजोलिया। बिजोलिया का आंदोलन इसलिए विशेष है कि यहाँ अंग्रेजों को झुकना पड़ा और समझौते में किसानों की सभी मांगें माननी पड़ी। बाद में बहुत विद्वानों ने इस आंदोलन का अध्ययन किया और सबने एक ही बात को रेखांकित किया कि इस आंदोलन की सफलता के पीछे विजय सिंह पथिक का कुशल नेतृत्व, कड़ी मेहनत और नेतृत्व क्षमता का ही पूरा योगदान था। “

– राजकुमार भाटी
अध्यक्ष- विजय सिंह पथिक शोध संस्थान

“भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में किसानों ने विजय सिंह पथिक की प्रेरणा से बढ़चढ़ कर भाग लिया। प्रथम सफल किसान आंदोलन विजय सिंह पथिक के नेतृत्व में बिजौलिया में हुआ। पथिक बिजौलिया के गांधी थे।”

-बद्रीप्रसाद गुरूजी
पूर्व विधायक मांडलगढ़ बिजौलिया

“हमारे बाबा विजय सिंह पथिक ने पूरी जिंदगी ही किसानों को संगठित करने में एवं अंग्रेजों से लड़ने में लगा दी थी। हमारे पूर्वज विजय सिंह पथिक ने बिजौलिया किसान आंदोलन का सफल संचालन और नेतृत्व कर किसानों को अधिकार दिलाया। देश में पंचायत राज की अवधारणा सबसे पहले पथिक जी ने रखी। हमे उनका वंशज होने में गर्व है।”

-बृजपाल राठी
संयोजक- पथिक फाउंडेशन एवं पथिक वंशज

“विजय सिंह पथिक एक महान क्रांतिकारी थे,उन्होंने अपना पूरा जीवन सामंतों और अंग्रेजों से संघर्ष करते हुए बिताया ,उनके द्वारा बिजौलिया किसान आंदोलन का नेतृत्व किया गया ,जिसकी इतिहास में कोई दूसरी मिसाल नहीं है ,इतिहास लेखकों ने महानतम स्वाधीनता सैनानी विजय सिंह पथिक के साथ न्याय नहीं किया । आज जरूरत है उनके संघर्ष को भारतवासियों के सामने लाया जाये।”

-भंवर मेघवंशी (  बहुजन चिंतक )

“किसानों को असली आजादी बिजौलिया किसान आंदोलन के जनक विजय सिंह पथिक ने किसानों पर लगने वाले करों से छुटकारा दिलवाकर दिलाई। युगो युगों तक पथिक क्षेत्र में किसानों के प्रेरणास्त्रोत के रूप में याद किए जाएंगे।”

-भैरूलाल जाट
किसान नेता-पूर्व उप प्रधान मांडलगढ़

“खेराड, ऊपरमाल, बेगूं, बरड़, बिजौलिया, मांडलगढ़ क्षेत्र में विजय सिंह पथिक ने ही सर्वप्रथम किसानों को संगठित कर किसान आंदोलन का शंखनाद किया। पथिक किसानों के मसीहा थे।”

– भैरूलाल गुर्जर
किसान नेता एवं पूर्व सरपंच

“बिजौलिया किसान आंदोलन के सफल नेतृत्वकर्ता विजय सिंह पथिक ने राजस्थान सेवा संघ की स्थापना कर सम्पूर्ण राजपुताना में क्रांति का शंखनाद किया। राजस्थान शब्द का ईजाद राजस्थान केसरी विजय सिंह पथिक ने किया। पथिक किसानों के मसीहा एवं राष्ट्रीय नेता थे।”

-राकेश कुमार आर्य
प्रधान संपादक – उगता भारत मीडिया समूह

“प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की विरासत में पले बडे विजय सिंह पथिक (भूप सिंह गुर्जर) क्रान्ति चेता का पदार्पण मानो केवल भारत माँ की बेडियों के लिए ही जन्मा तथा बिजौलिया  किसान आंदोलन का पुरोधा जिनकी हुंकार से राजशाही व अंग्रेज कांपता था। पथिक जी हम सबके प्रेरणास्त्रोत है।”

-यशवीर गुर्जर
कोषाध्यक्ष-विजय सिंह पथिक शोध संस्थान

( लेखक नन्द लाल गुर्जर पथिक टुडे के संपादक एवं सामाजिक कार्यकर्ता है )

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें