शनिवार, 15 दिसंबर 2018

देश के किसान नेताओं का राजनैतिक एनकाउंटर

देश के किसान नेताओं का राजनीतिक एनकाउंटर

1. सरदार वल्लभ भाई पटेल - देश के प्रथम प्रधानमंत्री बनने वाले थे परन्तु राहुल गांधी के दादा पंडित जवाहर लाल नेहरू की कुटिल चाल से प्रधानमंत्री पद से वंचित होना पड़ा, आखिर सरदार पटेल जी को उप प्रधानमंत्री एवं केंद्रीय गृह मंत्री के पद तक ही रहे।

2. विजय सिंह पथिक - तत्कालीन राजस्थान सहित मध्यभारत कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष विजय सिंह पथिक जी राजस्थान के प्रथम मुख्यमंत्री बनाए जाने वाले थे, विजय सिंह पथिक जी के नाम पर तत्कालीन सभी क्रांतिकारी नेता एकजुट थे, परन्तु राहुल गांधी के दादा पण्डित जवाहर लाल नेहरू ने राजस्थान का प्रथम मुख्यमंत्री क्रांतिकारी विजय सिंह पथिक जी को नहीं बनने दिया।

3. चौधरी नारायण सिंह चौहान - उत्तरप्रदेश में कांग्रेस के कद्दावर नेता रहे चौधरी नारायण सिंह जी चौहान को गांधी परिवार ने कभी आगे नहीं बढ़ने दिया। इन्हें भी उत्तरप्रदेश में उप मुख्यमंत्री के पद से ही संतोष करना पड़ा।

4. रामचंद्र विकल - उत्तरप्रदेश के प्रमुख कांग्रेस नेता रामचंद्र विकल को 1967 में उत्तरप्रदेश के विधायक दल की बैठक में नेता (मुख्यमंत्री) चुन लेने के बाद भी मुख्यमंत्री पद से वंचित रखा गया। रामचंद्र विकल जी को भी आखिर उत्तरप्रदेश में उप मुख्यमंत्री के पद से ही संतोष करना पड़ा।

5. चौधरी यशपाल सिंह - पश्चिमी उत्तरप्रदेश की राजनीति के प्रमुख क्षत्रप के रूप में पहचान रखने वाले चौधरी यशपाल सिंह जी ताउम्र कांग्रेस को मजबूत किया, अंतिम दिनों में भाजपा से लोकसभा चुनाव लड़ा और लास्ट समय मे समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाए गए। परन्तु इसी गांधी परिवार ने इनको आगे नहीं बढ़ने दिया, चौधरी साहब विधायक, सांसद, मंत्री अपने दम पर बनते रहे। इमरजेंसी के समय पूरे पश्चिमी उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की सीट जीत कर इन्होंने लाज बचाई थी, और तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी जी खुद इनको बधाई देने सहारनपुर आई थी, परन्तु इसी गांधी परिवार ने इनको राजनीति में आगे नहीं बढ़ने दिया।

6. राजेश पायलट - दौसा के पूर्व सांसद राजेश पायलट जी राजस्थान में किसानों के लोकप्रिय जननेता थे। पायलट जी केंद्रीय राज्य मंत्री भी बने। कांग्रेस के मजबूत नेता थे पायलट जी। कांग्रेस में अध्यक्ष अधिकांश गांधी परिवार से ही बनते आए हैं। कांग्रेस की तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी जी के सामने राजेश पायलट जी कांग्रेस अध्यक्ष हेतु नामांकन किया चुनाव लड़ा, और कुछ ही दिनों में समाचार आते है कि हवाईजहाज उड़ाने वाला पायलट सड़क दुर्घटना में मारा गया जो जांच का विषय है।

7. रामशरण दास - उत्तरप्रदेश में समाजवादी पार्टी के संस्थापक रहे समाजवादी नेता रामशरण दास विधायक एवं मंत्री बने। आजीवन रामशरण दास जी समाजवादी पार्टी के उत्तरप्रदेश के प्रदेशाध्यक्ष रहे सपा की यूपी में सत्ता भी आती रही और जाती रही, पर मुख्यमंत्री तो मुलायम सिंह यादव स्वंय और परिवार बनता रहा, रामशरण दास जी ताउम्र सपा की सेवा करते रहे।

8. कृष्णपाल गुर्जर - हरियाणा में मुख्यमंत्री का चेहरा बनकर रह गए। कृष्णपाल गुर्जर जी भारतीय जनता पार्टी के हरियाणा प्रदेशाध्यक्ष थे तब। वर्तमान में मोदी सरकार में केंद्रीय राज्य मंत्री है।

9. रामवीर सिंह बिधूड़ी - ऐसी ही कहानी वर्ष 2014 में दिल्ली में दोहराई गई। दिल्ली के मुख्यमंत्री श्री अरविंद केजरीवाल के इस्तीफा देने के बाद दिल्ली में भाजपा की अगुवाई वाली सरकार बनाने की कवायद शुरू हुई। भाजपा के 29 विधायक थे और उसे सरकार बनाने के लिए 67 सदस्यीय विधानसभा में पांच और विधायकों की जरूरत थी। श्री रामवीर सिंह बिधूड़ी जी को मुख्यमंत्री बनाने की शर्त पर नौ गैर भाजपाई विधायक सरकार बनाने के लिए भाजपा को समर्थन देने को तैयार भी  थे। उन्होंने तीन महीने तक इन्तजार भी किया। भाजपा नेतृत्व ने बिधूड़ी जी को मुख्यमंत्री बनाने का आश्वासन दिया भी था लेकिन बाद में भाजपा का शीर्ष नेतृत्व किसी अन्य नेता को मुख्यमंत्री और बिधूड़ी जी को उपमुख्यमंत्री बनाने के विकल्प पर विचार करने लगा, लेकिन भाजपा को सरकार बनाने के लिए समर्थन देने को तैयार नौ के नौ विधायक रामवीर सिंह बिधूड़ी जी के अलावा किसी और को मुख्यमंत्री बनाये जाने के लिए तैयार नहीं हुए। आखिर में पार्टी ने चुनाव में जाने का फैसला किया।

10. लेफ्टिनेंट कर्नल सचिन पायलट - सेना में लेफ्टिनेंट कर्नल सचिन पायलट दौसा और अजमेर से सांसद रह चुके है और डॉ मनमोहन सिंह सरकार में केंद्रीय राज्य मंत्री भी रह चुके हैं। राजस्थान में साल 2013 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस की बुरी तरह हार हुई, पूरे राजस्थान में मात्र 21 सीटे जीती। कांग्रेस आलाकमान ने किसान नेता सचिन पायलट को राजस्थान प्रदेश कांग्रेस कमेटी का प्रदेशाध्यक्ष बनाकर राजस्थान के किसानों एवं युवाओं में नई जान फूंकी। सचिन पायलट जी ने पूरे 5 साल राजस्थान के गांव गांव ढाणी ढाणी जाकर कांग्रेस पार्टी को मजबूत करने का कार्य किया। कांग्रेस आलाकमान हमेशा कहते रहे कि राजस्थान में कांग्रेस की सरकार बनने पर सचिन पायलट को मुख्यमंत्री बनाया जाएगा। इस दौरान राजस्थान में हुए सभी उप चुनावों में कांग्रेस ने सचिन पायलट के नेतृत्व में जीत हांसिल की। 2018 के विधानसभा के आम चुनाव कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष सचिन पायलट जी के नेतृत्व में लड़ा गया और कांग्रेस आलाकमान कहता रहा कि मुख्यमंत्री पायलट को ही बनाएंगे, आखिर राजस्थान में विधानसभा के चुनाव सम्पन्न हुए और कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष सचिन पायलट जी के नेतृत्व में कांग्रेस चुनाव जीत गई। अब वही पण्डित जवाहर लाल नेहरू की बेटी इंदिरा गांधी जी का पोता कांग्रेस का राष्ट्रीय अध्यक्ष पण्डित राहुल गांधी जी, पोती प्रियंका वाड्रा गांधी, पण्डित जवाहरलाल नेहरू की बेटी इंदिरा गांधी जी की पुत्रवधू सोनिया गांधी जी यानी कांग्रेस परिवार अर्थात कांग्रेस आलाकमान यानी कि तीन सदस्यीय परिवार राजस्थान में किसानों के नेता सचिन जी पायलट को मुख्यमंत्री बनाने से रोकने में लग गए। आखिर किसान नेता सचिन पायलट जी को भी राजस्थान में उप मुख्यमंत्री के पद से ही संतोष करना पड़ा।

नन्दलाल गुर्जर

भीलवाड़ा

सम्पर्क सूत्र 9166904121

शुक्रवार, 2 नवंबर 2018

सरदार पटेल मूलतः गुर्जर थे

सरदार पटेल मूलत: ''गुर्जर'' थे :  अनूप पटेल ( जे .एन. यू. - शोधार्थी )

Sardar Patel Hailed from Gurjar Family (Anoop Patel :A research Scholar in JNU)

सर्वाधिक प्रमाणिक जेनेटिक शोध साबित करते है कि पटेल / पाटीदारो के पूर्वज गुर्जर है

सर्वाधिक प्रमाणिक जेनेटिक शोध साबित करते है कि पटेल / पाटीदारो के पूर्वज गुर्जर है :-

Patel :-

(Gujarati: paṭel, pronounced [pə ʈ el]) is an Indian surname used by some of the agrarian castes predominant in the
Western Indian state of Gujarat.

The surname is the second most common in India, following Singh.

The Patel surname is found
primarily in the Indian states of Gujarat, Rajasthan, Madhya Pradesh

Uttar Pradesh, and Orissa. The BBC Radio 4
programme "Meet the Patels" (June 2009) asserted that there are around 410,000 to 670,000 Patels in the UK, where it is now the
24th most common surname

Patil is the Marathi version of this same name.

Ethnicity::

The surname is popular and denotes a particular landowning status. People of different religions and castes share the surname. The
Patels historically belonged to various Patidar sub-castes. Two main groups of Patels in Gujarat make up the Patidar community
including: 1. Leva Patel/Patidar [Charotar Leuva patels are the richest peoples from the beginning in gujarat] 2. Kadava Patel/Patidar.
The Kadava Patidar sub-caste is found mostly in districts of the Saurashtra region like Rajkot, Junagadh, Jamnagar and Bhavnagar
and also Mahesana. the Leuva Patidar sub-caste are mainly found in the Charotar Region (which are also known as Charotar Leuva
Patidars) (Kheda, Anand), Kanam (Vadodara, Bharuch, Panchmahal), South Gujarat and Saurashtra region. The book titled "Patel a
Life" by Rajmohan Gandhi throws some light on the ancestors of Sardar Patel: "His mother Labda gave him birth in the house of her
brother Doongerbhai Desai.. Labda's husband Jhaverbhai belonged not to Nadiad but to a village called Karamsad(twelve miles south
of Nadiad and three miles west of the town of Anand), where he tilled a ten acre plot and owned a small house. He and Labda and all
their relatives were Patidars. Centuries earlier their ancestors had migrated from the far north and taken possession of a sandy yet
rich stretch of soil called the charotar... the Patidar ancestors - possibly linked to the formidable Huns who swept down into India from
the northwest in the sixth century or to the Gujars of Punjab or to both-cleared the Charotar woods, improved the sandy ground with
dung manure and cart loads of black soil... they also soldiered for nearby chieftains... more tangibly, they obtained a clear title of the
lands they had occupied, and were therefore called Patidars-holders of a land title - or Patels. The Patidars have alternated, in their
customs, between eating meat and abstaining from it, between paying bride-price and demanding dowry from a bride's parents,
between permitting widow-remarriage and banning it... while changing their customs, the Patidars retained their Hindu religion, ralling together against outsiders, male supremacy, silence before elders and an individual's subservience to the (extended) family but
independence before the world. Bluntness in speech, an unconcern about dress and appearance, a sense of equality within the fold
that turned the village into " a collectivity of Patidar brothers" and a sense of superiority towards non-Patidars, a self-image of tough
independent men... naturally given to ruling over others" marked the Patidar character.
The Gujars who migrated from North India to Gujrat started calling themselves as Patidar or Patel. In Rajasthan, Patel is a very
common word used by Gujars... in every village there is a title (Patel) given to some dominant family and this title of 'Patel" runs in the
family and is transferred to the eldest son of the family. In areas around Bharatpur, Gujars are popularly called as "Patel" by other
communities. It is similar to "Chaudhary" which was used to be in the NCR and Western Uttar-Pradesh as a title both by Gujars and
Jats but now a days in the entire Northern India "Chaudhary" is being used as surname by Jats.The Gujars of North India also have
two main devisions- (i) Laur Gujar and (ii) Khari Gujar that is very similar to 1. Leuva Patidar and 2. Kadava Patidar of Gujrat. During
the Moghul era Patels were trusted heads of the villages. The British also relied on Patels to carry out administration in any particular
village. Pate is derived from the word "Pattalikh" meaning certain portion of land "patta" (A unit of Land) and named after the head of
the village "likh" meaning "named". Amin surname bearers are also known as Patels. Saurashtra kadva patel have specific surname
like Sapovadia, Jasani, Bhut, Viroja, Garala, Savsani, Marvaniya etc. These are drawn on the basis of their migration from a village,
e.g. Sapovadia brought from Sapovada village. Saurastra Leuva Patels in the Saurastra region district have specific surnames:
Abhangi, Babaria, Busa, Khoyani, Pambhar, Limbasiya, Kanani, Kunjadiya, Dobaria, Keraliya, Radadia, Gajera, Sutaria, Sojitra and
so on from their original village names (from the Kheda, Vadodara, Ahmedabad, and Saurastra regions). In South Gujarat, nearly 90%
of the members of the Koli and Kanbi Patidar sub-castes bear 'Patel' as their last name. The Patels outnumber all other Gujaratis in
the United States, United Kingdom, and New Zealand. The surname 'Patel' is also used by Kolis in other regions of Gujarat. Besides
Kolis and Kanbis, Dhodia Patidars of South Gujarat also use Patel as their last name. The surname can also be found amongst
Muslims, and Parsis. Patidars of Rajasthan (south and south-east rajasthan) and Madhya-Pradesh mainly use 'Patidar' itself as
surname. The Patidars of these two states are also divided into two groups, Leuva and Kadava. It is also the surname of many of the
Gujarati Muslim Vora Patel communities.
It should be noted that other Gujaratis who migrated out of what is now the state of Gujarat during the British Raj to British East Africa
(Kenya and Uganda) would sometimes adopt the surname 'Patel' and this surname was then subsequently passed onto their
descendants (who now mainly reside outside Kenya and Uganda). Also, during the British Raj, some 'Patels' who migrated to British
East Africa and the Union of South Africa (South Africa) adopted different surnames, usually the name of their village (e.g. 'Dandikar'),
their trade (e.g. 'Contractor'), or even their grandfather's name and subsequently these surnames have been passed down to their
descendants.
Origins
Patels do not belong to any particular religion or caste; rather the name merely indicates that the bearer came from a particular region,
historically. Some Patels follow Islam, Zoroastrianism or Christianity, but they are predominantly followers of Hinduism.
Gujaratis bearing the last name Patel were from the Punjab region and are Suryavanshi branch Kshatriyas Patels are a sub-group of
the Gurjar clan who are dispersed all over the Indian sub-continent. These refugees were accepted in present day Gujarat by the
Solanki kings.
The Solanki king gave uncultivated land in the Petlad Taluka. This land was divided into villages and for each village a head was
appointed. His job was to keep all records. Each village gave a portion of the crop to the king, as a form of tax. The book in which this
tax was recorded was called the pat, and the act of writing it down was known as likh; hence the head of the village was addressed as
Pat-Likh and the people of the villages became known as Patlikhs. Over time, changes in the vernacular produced modern variations
such as Patel, Patidar and Patil.
The Patels were further distinguished by the village they belonged to. Examples of this are the Leava Patels who originated from the
village of Leava.

http://documents.mx/documents/r2-in-india-frequency-within-communities.html

मेरी रगो में गुर्जर खून : सरदार पटेल

मेरी रगो में गुर्जर खून : सरदार पटेल ( कम्पीटीसन सक्सेस रिव्यू - जुलाई' ८५)
The Blood of our Martial Gujjar Ancestors in My Veins - Sardar Patel (competition success review July '85)

बुधवार, 31 अक्तूबर 2018

राजनैतिक उपेक्षा बर्दाश्त नहीं करेगा गुर्जर समाज

गुर्जर समाज ने कहा राजनीतिक उपेक्षा बर्दाश्त नहीं।

गुर्जर समाज ने मनाई सरदार पटेल जयन्ती।

मांडलगढ़। 31अक्टूबर2018

मांडलगढ़ विधानसभा क्षेत्र के गुर्जर समाज ने लौहपुरूष सरदार वल्लभ भाई पटेल जयन्ती का आयोजन त्रिवेणी संगम पर गुर्जर धर्मशाला में किया। कार्यक्रम की विधिवत शुरुआत सरदार पटेल की प्रतिमा पर मालार्पण कर की गई। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि ब्लॉक कांग्रेस कमेटी के प्रवक्ता उदयलाल गुर्जर एडवोकेट ने कहा कि सरदार पटेल ने देश की सभी रियासतों का एकीकरण कर अखण्ड भारत को मजबूत किया। सरदार पटेल देश के गुर्जर पुरोधाओं में से एक है। गुर्जर समाज के संगठन को गांव गांव, ढाणी ढाणी तक मजबूत करना होगा। कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे जिला गुर्जर महासभा के जिला महामंत्री शंकरलाल गुर्जर एडवोकेट ने कहा कि गुर्जर समाज की युवा पीढ़ी सरदार पटेल के पदचिन्हों पर चलकर सक्रिय राजनीति में भाग ले। सरदार पटेल ने गुर्जर समाज में जन्म लेकर राष्ट्र हित में अविस्मरणीय योगदान और बलिदान दिया। गुर्जर धर्मशाला के अध्यक्ष कन्हैयालाल गुर्जर ने समाज को संगठित रहने की कहा। सामाजिक कार्यकर्ता नन्दलाल गुर्जर ने कहा कि मांडलगढ़ विधानसभा क्षेत्र में गुर्जर समाज के 35 हजार वोट होते हुए भी राजनीतिक पार्टियों द्वारा घोर उपेक्षा की जा रही हैं जो कतई बर्दाश्त नहीं किया जाएगा साथ ही कहा बिजौलिया के राजकीय महाविद्यालय का नामकरण विजय सिंह पथिक किया जाए व मांडलगढ़ उपखण्ड स्तर देवनारायण आवासीय विद्यालय बनाए जाने की मांग पर दोनों राजनीतिक दल अपनी स्थिति स्पष्ट करें। पंचायत समिति सदस्य शिवकुमार गुर्जर ने कहा कि गुर्जर समाज शिक्षा की अलख जगाकर आगे बढ़े और  मांडलगढ़ उपखण्ड मुख्यालय पर गुर्जर छात्रावास की मांग रखी। उप प्रधान प्रत्याशी रतनलाल गुर्जर ने कहा की गुर्जर समाज की प्रतिभावान विद्यार्थियों को सम्मानित किया जाना चाहिए ताकि समाज में शिक्षा का माहौल तैयार हो। समाज मे शैक्षिक क्रांति की जरूरत है। अखिल भारतीय गुर्जर महासभा के जिला मंत्री एवं युवा कांग्रेस के ब्लॉक अध्यक्ष गोपाल गुर्जर ने कहा कि गुर्जर समाज के अधिकारों की अनदेखी करने वालो की गुर्जर समाज भी कर देगा इस बार अनदेखी। कार्यक्रम को राष्ट्रीय वीर गुर्जर महासभा के ब्लॉक अध्यक्ष सोराम गुर्जर, युवा गुर्जर महासभा के ब्लॉक उपाध्यक्ष जगदीशचन्द्र गुर्जर, ब्लॉक महामंत्री बरदीचन्द गुर्जर, अखिल भारतीय गुर्जर महासभा के जिला मीडिया प्रभारी मुकेश गुर्जर, युवा गुर्जर महासभा के ब्लॉक अध्यक्ष राधेश्याम गुर्जर, किसान नेता शंकरलाल गुर्जर, देव सेना के उपाध्यक्ष पन्नालाल गुर्जर, भेरूलाल गुर्जर, श्रवण गुर्जर, जमनालाल गुर्जर, धर्मराज गुर्जर आदि ने सम्बोधित करते हुए कहा कि गुर्जर समाज संगठित है और अपने हक और अधिकारों के संघर्ष में एकजुट है। राजनीतिक पार्टियों द्वारा गुर्जर समाज की उपेक्षा बर्दाश्त नहीं कि जाएगी।

शनिवार, 1 सितंबर 2018

गुर्जर इतिहास के बिना भारतीय इतिहास ही अधूरा

गुर्जर इतिहास के बिना भारतीय इतिहास ही अधूरा है।

चौधरी नेपाल सिंह कसाणा
राष्ट्रीय उपाध्यक्ष
अखिल भारतीय गुर्जर महासभा
राष्ट्रीय उपाध्यक्ष
अपना दल (एस)
प्रेदश प्रभारी
पश्चिमी उत्तर प्रदेश एवं राजस्थान

  मुठ्ठी भींच जाती है, भृकुटि तन जाती है, नसों मे खुन गर्म लावे की तरह दौड़ता महसूस होने लगता है, साँसो की रफ्तार तेज होने लगती है, शरीर मे बिजली जैसी सरसराहट पैदा हो जाती है, मस्तक ऊँचा उठने लगता है ओर ऐसा लगने लगता है कि बस अंदर से एक दहाड़ निकलने वाली है...ये तब होता है जब भी कभी अकेले मे इतिहास किस्से कहानियाँ याद आती है, उन गुर्जर सपूतो की जो चले गये ओर एक शौर्य गाथा छोड़ गए अपने पीछे। गर्व से सीना चौड़ा हो जाता है जब नाम के साथ गुर्जर जोड़कर कोई पुकारता है। हम इसलिए गर्व करते है अपने इतिहास ओर अपनी कौम के सिंह समान सपूतो पर क्योंकि हमें मौका मिला उनको पढने का, हमने किस्से कहानियाँ सुनी अपने बुजुर्गों से अपनी कौम के वीरो की अपने पूर्वजो की। हमें याद है अपना गौरवशाली इतिहास क्योंकि हमने नाटकों सभाओं ओर सांगो मे सुना ओर देखा अपने समाज के इतिहास ओर हस्तियों के अमिट योगदान ओर जज्बे शहादत को। हमारा सौभाग्य था कि हमें गाँव कि चौपाल, बुजुर्गों का साथ, उनका आशीर्वाद बचपन से मिलता आया। हमारा बचपन गाँवो की चौपालो मे ओर बुजुर्गो के साथ बैठकर बीता। जवानी मे अपने समाज के बुद्धिजीवी लोगों के साथ रहने का मौका मिल रहा है।इसिलिए हमें अपने इतिहास ओर पूर्वजों कि शौर्य गाथाओ का ज्ञान है। लेकिन हमारी आने वाली पिढियाँ ओर हमारी नस्ले हमारे बच्चे शायद ही इस गौरवशाली इतिहास को सुनने ओर जानने का सौभाग्य पा सके..मुझे तो नही लगता। क्योंकि आज के दौर ओर परिवेश मे ना चौपाले है ना बुजुर्गों का साथ है। चौपालो मे बैठाना ओर जाना तो दूर की बात उनको पता तक नहीं है चौपाल कहते किसे है। जहाँ बचपन मे बच्चों को महाबली दादावीर जोगराज सिंह के वे किस्से कहानियाँ सुनाई जाती थी जिनमें बच्चों को बताया जाता था, कैसे एक गुर्जर महाबली ने तैमूरलंग के छक्के छुड़ा दिये थे, आज उनकी जगह बच्चों को शाहरूख खान ओर जेम्स बांड़ सुनाया जाता है। जहाँ कभी वीरांगना रामप्यारी गुर्जरी की गाथाए घर मे बच्चों को दादी रात मे सुनाया करती थी। आज वहां रामप्यारी गुर्जरी की जगह सन्नी लियोनी ओर जैनिफर लोपेज दिखाई जाती है। राजा विजय सिंह गुर्जर व कल्याण सिंह गुर्जर के देश प्रेम के किस्सो की जगह कोहली अनुष्का की रासलीला बच्चों को दिखाई जाती है।
  
   आज बच्चों को तो छोड़ो अधिकतर गुर्जर युवाओं तक को मालूम नही है कि  राजा उमराव सिंह गुर्जर, फतुआ गुर्जर जैसे शेर हमारे पुर्वज थे ओर कैसे उन्होंने देश के दुश्मनो के नाक मे नकेल ड़ाल दी थी । आज का युवा, बच्चा विड़ियो गेम ओर टीवी मोबाइल मे व्यस्त है ओर आईपीएल मे मस्त है, अपनी गुर्जर कौम के गौरवशाली इतिहास से कोसो दूर अंधकार मे अज्ञान से ग्रस्त है।

   एक दूसरी बात ये ही हमारे गुर्जर समाज के इतिहास को मिटाने ओर दबाने का काम बहुत पहले से होता आया है ओर हो रहा है। मुगलो तुर्कीयो अवनो से लेकर अग्रेजो तक हमारे गुर्जर समाज ने कदम कदम पर लोहा लिया।कदम कदम पर इनको धुल चटाकर इस भारतवर्ष कि लाज बचायी। इसी गुर्जर समाज की चौपालो मे अवनो के सिर काटकर गाड़ दिये गए। इन्हीं गुर्जरो की तलवारो ने कितने ही फिरंगियो को मौत के घाट उतार दिया गया।इन्हीं गुज्जरो के कितने ही लाल दुश्मनो की तोप के दाहनों पर छाती अड़ाकर खड़े हो गये थे। कितने ही गुर्जर सुरमा इस देश के लिए फाँसी चढ गये।गर्दने कटवाना मंजूर था पर दुश्मन के सामने झुकना नही। अग्रेजो को हमारे खौफ ने हमे अराजक जाति घोषित करने पर मजबूर कर दिया।  जितनी कुर्बानिया हमने दी इतनी सबने मिलकर भी नहीं दी होगी इस देश के लिए। लेकिन मिला क्या???मिला अपने ही देश मे अपमान ओर जलालत। अपने ही देश मे गुमनाम बना दिये गए। देश के इतिहास मे गुर्जर समाज के बलिदान को गुमनामी के अंधेरे मे धकेल दिया गया। स्कूल की इतिहास की पुस्तकों मे बाबर अकबर महाराणा शिवाजी पढ़ाया जाता है लेकिन ना गुर्जर सम्राट कनिष्क महान, गुर्जर सम्राट मिहिरकुल हूण, ना गुर्जर सम्राट मिहिरभोज पढाया जाता, ना पुलकेशिन चालुक्य पढाया जाता, ना सवाईभोज, ना सूबा देवहंस कसाणा, ना राहिल, हर्ष, यशोवर्मन् और धंग पढाया जाता। हमारे गुर्जर समाज के वीरो को इतिहास मे कुछ इस तरह दफना दिया गया के जैसे वो हुए ही ना हो। स्वतंत्रता युद्ध का नायक बनाकर मंगल पांड़े को इतिहासो मे अमर कर दिया गया लेकिन धनसिह कोतवाल गुर्जर को गुमनामी की अंधी खाई मे ड़ाल दिया गया इस देश के स्कूलों की किताबों मे। आज पूछ कर देख लो अपने स्कूल जाने वाले बच्चों से के बताओ धनसिह कोतवाल कौन था?? मै लिख कर दे सकता हूँ वो एक शब्द धनसिह गुर्जर के बारे मे बता नही सकते। उनकी गलती नही है क्योंकि उनको पढाया ही नहीं जाता स्कूल मे कि आजादी के युद्ध का नायक धनसिह कोतवाल था।

   गांधी नेहरू के अनशन तो बच्चों की किताबों मे है लेकिन ये किसी किताब मे नही लिखा कि अंग्रेजो पर बुलंदशहर के काले आम पर बहुत से गुर्जर क्रान्तिवीरो के साथ राजा राव उमराव सिहँ भाटी, राव रोशन सिहँ भाटी, राव बिशन सिहँ भाटी को बुलन्दशहर मे कालेआम के चौहराहे पर हाथी के पैर से कुचलवाकर फाँसी पर लटका दिया था। चन्द्रशेखर की तरह हमारे गुर्जर समाज के ऐसे आजाद ख्यालो के वीरो को इतिहास से बेदखल कर दिया गया। जैसे चन्द्रशेखर का नाम बच्चे बच्चे कि जुबान पर मिलता है क्या कभी सुना है झंड़ा गुर्जर का नाम किसी से??? नही सुना होगा। मेरठ के इलाके में झंडा नाम का एक मशहूर बागी था।
झंडा मेरठ जिले की सरधना तहसील के बूबकपुर गांव का रहनेवाला था। कहते हैं की उसने अंग्रेजी शासन-सत्ता को चुनौती देकर दबथुवा के साहूकारों के घर धावा मारा। उसने पोस्टर चिपकवा कर अपने आने का समय और तारीख बताई और तयशुदा दिन वह साहूकार के घर पर चढ आया। भारी-भरकम अंग्रेजी पुलिस बल को हरा कर उसने साहूकार के धन-माल को ज़ब्त कर लिया और बही खातों में आग लगा दी। साहूकार की बेटी ने कहा की सामान में उसके भी जेवर हैं, तो झंडा ने कहा कि “बहन जो तेरे हैं ईमानदारी से उठा ले”।

   इतिहास की किताबों मे सबको जगह मिली क्या वीर विजय सिंह पथिक को इतिहास मे सम्मान मिला??। क्या कोई स्कूली बच्चा बता सकता है कौन था विजय सिंह पथिक?? नही बता सकता। क्योंकि उन्होंने ये नाम कभी पढ़ा या सुना ही नही।

   खुब लड़ी मर्दानी वो तो झाँसी वाली रानी हर कोई जानता है लेकिन धौला गुर्जरी, रामप्यारी, विरागंना मृगनयनी का नाम बच्चे तो छोड़ो युवा तक नही जानते होंगे। क्योंकि ये सब अंधकार के तुफान मे बहा दिये गए अपने ही देश मे। कुषाण, हूण, चौहान, गहलोत, सोलंकी, प्रतिहार आदि वंश मूलतः गुर्जर है। गुर्जर प्रतिहार वंश भी हमारे पूर्वजों से ही सुशोभित रहा जिसने 300 साल तक अरब मुस्लिम आक्रांताओं को इस देश में घुसने नहीं दिया और भारतीय संस्कृति को मिटने और नेस्तनाबूद होने से बचाया था।

  भारत की संसद पर हमले की घटना हर किसी को याद है ओर मालूम है लेकिन ये शायद ही किसी को मालूम हो कि उस हमले मे हमारे चार गुर्जर शेर श्री नानकचंद , श्री महिपाल, श्री बिजेन्द्र सिंह, श्री वीरेन्द्र सिंह शहीद हुए थे। ये सबुत है इस बात का कि गुर्जर वीरो का बलिदान हमेशा गुमनामी के समुद्र मे दफन किया जाता रहा है। दरियावसिंह, प्रताप राव, उमराव माटी, मनसुख गुर्जर, अनंगपाल तंवर, जैत सिंह, इंद्र सिंह गुर्जर (विजय सिंह पथिक के दादा), दयाराम खारी गुर्जर, कदम सिंह गुर्जर, अचल सिंह गुर्जर, ऐमन सिंह गुर्जर, सूबा देवहंस कसाना गुर्जर, हिम्मत सिंह गुर्जर, फतेह सिंह गुर्जर, फत्ता गुर्जर नंबरदार, सुलेख सिंह गुर्जर, कलुआ सिहं गुर्जर, राजा हरिसिंह गुर्जर (सहारनपुर रियासत के राजा), गुर्जराणी आशा देवी (मुजफ्फरपुर), उदमीराम, बाल्लेतंवर, जोगराज ओर ना जाने कितने ही नाम है जिनको इतिहास से बेदखल सा ही कर दिया गया और ये ही नहीं ऐसे लाखो नाम है। हमारे गुर्जर समाज के वीरो के जिनको इतिहास मे अनदेखा कर दिया गया। नाम लिखते लिखते कागज कम पड़ जायेगे कलम कि स्याहि सूख जाएगी पर ये नामों ओर बलिदानो का किस्सा खत्म नही होगा।
लेकिन याद रखना मेरे गुर्जर समाज के लोगों ये अनदेखी आने वाले समय मे बहुत भारी पड़ेगी इस समाज को। जिनके पूर्वजों के नाम इतिहास से मिट जाते है ना उनकी नस्ले अपने इतिहास ओर गौरव से अनजान ओर विमुख होकर अंधकार मे खो जाती है। कायरता का दानव उनकी खुद्दारी ओर वीरता को निगलने लगता है। जब हमारी नस्ले अपने इतिहास से ही अनजान हो जायेगी तो समझ लेना ये गुर्जर होने का गौरव ओर गर्व वो खुद ब खुद को देंगे।उनको ये एहसास ओर अनुभव होना बंद हो जाएगा की हम महान ओर शूरवीर कौम के खून का कतरा है। अब भी समय है जागो ओर आवाज उठाओ अपने समाज के गौरव को इतिहास मे उचित स्थान ओर सम्मान दिलाने के लिए और जो हमारे गुर्जर समाज के प्रतिनिधि संसद मे बैठे है ना उनको भी कहना चाहता हूँ नींद ओर नशे से बाहर आ गये हो तो माँग करो अपनी सरकार से अपने समाज के वीरो को स्कूल की इतिहास पुस्तकों मे जगह देने की। तुम लोगों को संसद मे सिर्फ सब्सिड़ी वाली थाली खाने के लिए नहीं भेजा है इस समाज ने बल्कि इसलिए भेजा है कि अपने समाज के लिए आवाज बुलंद कर सको।
स्कूली इतिहास की किताबों मे जो होता है उसी को बच्चा बचपन से पढ़ता है ओर वही नाम उसके मन मस्तिष्क पर छप जाते है।इसलिए हमारे समाज के वीरो को बच्चों की किताबों मे जगह मिले तभी वो जान पायेगे अपने गौरवशाली इतिहास को और आप लोग कितना ही आधुनिक बनाओ कुछ ही सिखाओ पढाओ अपने बच्चों को कोई दिक्कत नही लेकिन हर रोज अपने बच्चे को अपनी गुर्जर कौम के किसी ना किसी वीर की कहानी जरूर बताएँ और वो तमाम युवा जो आईपीएल, क्रिस गेल, वाटसन, आमीर, रीतिक, जेम्स बांड़ से लेकर मोदी, योगी, अखिलेश, राहुल आदि आदि की माला जपते हो, खुब जपो लेकिन बस इतना कहना चाहता हूँ अपने गौरवशाली इतिहास के कुछ पन्ने  जरूर पढे। क्योंकि आप और आपकी आने वाली नस्ले तभी गुर्जर होने पर गर्व कर पायेगी जब आपको ओर आने वाली नस्लो को गर्व करने का कारण पता होगा। हमने भी अपने गुर्जर समाज के मान सम्मान और स्वाभिमान को जीवन्त रखने के लिए दृढ़ प्रतिज्ञा के साथ जब तक जिंदा रहेंगे इतिहास के पन्नों में छिपे अपने इतिहास को भारत के एक एक व्यक्ति के सामने लाने के लिए तन मन धन से पूरी ताकत के लगे रहेंगे। बस इंतजार है आपका....प्रकाशित गुर्जर इतिहास की किताबों को खरीदने के लिए आपको भी प्रतिज्ञा लेनी ही होगी..अब गुर्जर समाज ने अंगड़ाई ले ली है अपने पूर्वजों कि शौर्य गाथा को प्रत्येक के  कानों में जोर जोर से सुनाना है..।
लेख बहुत लंबा हो गया अब बस चार लाइनो के साथ खत्म करूँगा-

    इतिहासो के पन्नों मे जिनकी अमर कहानी रहती है।
    उन वीरो की यशगाथा हर ओर जवानी गाती है।
    लेकिन जिनको दफन कर दिया जाता है इतिहासो मे।
    उनके निशा भी नहीं मिलते गुमनामी के वनवासो मे।।

जय गुर्जर, जय गुर्जर।।

बुधवार, 29 अगस्त 2018

गुर्जर युवाओं का सोशल मीडिया के कबाड़ को ढोना

सादर जय पथिक

गुर्जर युवाओं का सोशल मिडिया के कबाड को ढोना।

मित्रो,
      आज मैं एक ऐसी विडम्बना से आप लोगों को रूबरू कराना चाहता हूं जो हमारे आस-पास रहते हुए हमारे दिमागों में एक कबाड रूपी विचार धारा को घुसाने की भरसक कोशिस की जा रही है।मजे की बात यह है कि हमारे ज्यादातर नौजवान अनभिज्ञ हैं।

कायदे से सोशल मीडिया एक बहतर मंच भी साबित हो सकता है एक दूसरे से विचारो को जानने व समझने के लिए लेकिन वैसा नही हो पा रहा है।
देश में भिन्न-भिन्न प्रकार के सामाजिक,धार्मिक एवं राजनीतिक संघठन है।कमोबेश सभी के अपने आई टी सैल(वार रूम)बने है।उन एक्सपर्ट को बाकायदा मोटी पगार दी जाती है।
आज के परिवेश में सभी संघठन व ग्रुप अपने फायदे के लिए किसी हद तक जाकर गलत सलत ऐजेन्डा समाज में फैलाने के कार्य में लगे है।
उनका न तो समाज,देश अथवा नौजवान के भविष्य से कोई लेना देना है।
हमारे समाज का एक चरित्र रहा है और आज भी है हम जल्दी भावुक हो जाते हैं।भावुकता वश इन्ही के बुने हुए जाल में फस कर गलत निर्णय पर पहुंच जाते हैं।
आज गुर्जर नौजवान जहाँ पहले के मुकाबले ज्यादा जागरूक अथवा प्रगतिशील हुआ है वहीं दूसरी तरफ ज्यादा भ्रमित भी हुआ है उसमें सोशल मीडिया का बडा रौल है।
एक विशेष संघठन व विशेष राजनीतिक दल हमारे नौजवानों को दिगभ्रमित करने में लगा है उनमें कथित धार्मिक उन्माद भरकर,कथित राष्ट्रवादी स्वांग से विचलित करने का कार्य कर रहा है।
कभी -कभी तो अतिरेक जैसी स्थिति होती है।तरह-तरह के मैसेज अथवा वीडियो डालकर जिनका हमारे देश अथवा समाज से कोई सरोकार नहीं है उन्हें केवल भावनाओं को भडकाने के लिए सोशल मीडिया पर छोड दिया जाता है।वहाँ पर सबसे ज्यादा धैर्य पूर्वक एवं विवेक पूर्वक समझना जरूरी है।ये वही लोग हैं जो हमारी भावना के साथ खिलवाड कर अपना राजनीतिक उल्लू सीधा करना चाहते हैं।
नौजवानो थोडा विचार करो हम जाति के साथ-साथ क्लास भी हैं।

जहाँ हम एक तरफ अपने महापुरूषों का बखान करते-करते नहीं थकते कि हम देशभक्तों की संताने हैं।वहीं कोई भी हमें गलत-सलत जानकारी देकर अपनी गिरफ्त में ले लेता है।यह एक गंभीर विषय है।

कुछ हमारे समाज के तथा कथित इतिहासकार भी विशेष भूमिका निभाने में लगे हैं।इन्हे बाकायदा एक जिम्मेदारी देकर छोडा हुआ है।यह उससे भी ज्यादा खतरनाक है।
जिन लोगों की वजह से हम व हमारा समाज दर-दर की ठोकरें खाने को मजबूर है आज वही लोग कैसे हमारे शुभचिंतक हो गये।
जिन लोगों ने इतिहास,वर्तमान सब कुछ बिगाडा वह कब से हमारे तारनहार हो गये यह विचारना आवश्यक है।
यह एक विचारणीय विषय है इसपर गुर्जर युवाओं को गहन विचार के लिए मेरा आह्वान है।

मित्रो हम सब समाज का हित चाहते हैं लेकिन निजि स्वार्थ की सर्त पर नहीं।
नौजवानों किसी की कठपुतली नहीं बनो खुद के विवेक के बल पर आगे बढो।
ज्ञान वही है जिसे छान कर पीया जाय नही तो विष के समान है खुद भी मरोगे और समाज भी।

आज सब कुछ बदल चुका है,दिल से नहीं दिमाग से विचार करो।

अतः गुर्जर समाज के नौजवानों इस कबाड के टोकरे को अपने सर से उतार फैंको।
अपने विवेक को जगाने का कार्य करो।
हमारा सबसे बडा धर्म यह है समाज को मानसिक गुलामी से निकालने का भरसक प्रयास करें।

नौजवानों समाज उन्माद से नही,जज्बात अथवा आत्मविश्वास से आगे बढेगा।

अपने आस-पास के वैचारिक वातावरण को बहतर से और बहतर बनाने का कार्य करो।

समाज में जहर घोल रहे लोगों का पर्दाफास करो।
आओ हम प्रण करें न तो दिगभ्रमित होंगे और न ही समाज को होने देंगे।

नौजवान मित्रो संभल जाओ वर्ना हमारी दास्तान भी न बचेगी।

हमें वीर विजय सिंह पथिक जी के विचारों को सीढी बनाकर खुद व खुद के समाज के लिए आगे आना होगा।
अपने जैसे सैकडों समाजों को साथ लेकर बढना होगा।

मित्रो अब तीर व तलवार से नहीं आपसी समझ,भाईचारे अथवा स्वः विवेक से बढना होगा।
हमारे एक कदम के साथ अनेकों कदम जुड जाएंगे,फिर काहे की देरी है,बिगुल बजा दो एक नए उम्मीद के सूरज को उगाकर ही रहेंगे।

     यशवीर गुर्जर
मो. 8595428233.

शनिवार, 25 अगस्त 2018

इतिहास एवं संस्कृति की तरफ लायालित गुर्जर युवा

मित्रो सादर जय पथिक

गुर्जर इतिहास व गुर्जर संस्कृति की तरफ लालायित गुर्जर युवा

मित्रो,
      हर्ष होता है जब युवाओं को अपने अतीत में झाँकने अथवा समझने की होड दिखती हो।आज चहुं और एक ही धारा प्रवाह है।हम क्या थे,हमारा इतिहास क्या रहा है एवं हमारी संस्कृति क्या रही है ?एक तरह से ऐसे ही है जैसे कोई व्यक्ति बहुत दिनों से भूखा हो और उसे अचानक खाना मिल जाए।वजह भी साफ दिखती है।समाज काफी अंतराल के बाद जागा।कमोबेस हमारा इतिहास बिगाडा गया(दबाया गया),सब कुछ बिगड जाने के बाद हमारी युवा पीढी फिर से संजोने की तैयारी कर रही है।बहुत दिनों के सूखे के बाद बारिश की संभावना जगी हो।

अब सोचने का विषय यह कि हम कितना कर पाते है यह भविष्य के गर्भ में है लेकिन आगाज जबरदस्त दिखता है।

जानकार सूत्रों के अनुसार कई सामाजिक सरोकार के लोग प्रयासरत हैं।कई इतिहासकारों को यह कहते लिखते देखा गया है अपनी निजी सोच को भी इतिहास के समावेश में संजोने के प्रयास में लगे है।मैं कई बार लिख चुका हूं जिसपर मेरे समाज के लोगों को आपत्ति भी रही है।

हमेशा से मेरे द्रष्टिकौण में यही सब रहा है हमें निरंतर अपने कार्यों की समीक्षा करते रहना चाहिए।

मुद्दों को जितना उठाना जरूरी है,उसे अंजाम तक पहुंचाना उससे भी ज्यादा जरूरी है।

हम व हमारा समाज एक लोकतांत्रिक व्यवस्था का हिस्सा हैं।उसकी अपनी एक गरिमा एवं मर्यादा है।

खुशी का विषय यह है जिस समाज के लोगों को दूसरे समाज के लोग "चोर"जैसे नामों से नवाजा जाता था आज वही लोग हमारे बुजुर्गों के बलिदान की गाथा गाने को मजबूर है।इसी के साथ-साथ इससे आगे का कार्य अधूरा है।मेरी अथवा मेरी टीम के लोगों की विश्वप्रसिद्ध विचारकों अथवा इतिहासकारों से वार्ता हुई हैं जो दूसरे समाजों से आते हैं।उनका भी कहना यही है हम मानते है गुर्जरों का इतिहास एवं संस्कृति अनूठी व बेजोड है लेकिन जब तक आप जबानी कहते रहोगे तब तक कोई सुनने व समझने वाला नहीं है।

गत वर्ष पूर्व हमारे समाज से जुडे लोगों ने एक सुरूआत की हम कोई दिवस मनाएं,मनाया भी जाने लगा लेकिन सवाल बार-बार जहन में उठता है कि हमारे ढेरों राजा,महाराजा तथा सम्राट हुए एवं वीर विजय सिंह पथिक जी जैसे क्रांतिकारी के साथ-साथ बडे विचारक भी हुए।इसी के साथ ही अनेकों ने फाँसियां खायी तो मेरे ख्याल से एक वर्ष में तो दिन ही मात्र गिनती के हैं।

मुझे इस बात का अहसास है कई सामाजिक मित्र इस बात को अन्यथा समझ बैठेंगे।

मित्रो पूरे देश दुनिया में सम्राट मिहिर भोज जी जयंती को मिहिरोत्सव के रूप में मनायी जा रही है। यह पर्व हमारे लिए गौरव का पर्व है। घर-घर में उत्सव का पर्व है।

मेरी सदैव से मान्यता रही है इतिहास,संस्कृति के साथ-साथ वर्तमान और भविष्य की पुख्ता कार्य योजना पर भी विचार करें। जिसका अभी तक अभाव है।कई बार मैंने इस पर अपनी बेबाक राय रखी है,जवाब कहीं से भी संतोष जनक नहीं है।

मेरा युवाओं  को विनंम्रता पूर्वक यही कहना है,दिशा ही दशा को तय करती है। इसलिए मिहिरोत्सव पर यह प्रण करें हम समाज के सभी लोग समाज व देश हित में सदैव तत्पर रहेंगे।

    आओ मिलकर एक शानदार कल का निर्माण करें।
    चलो चलें,उस ओर चलें,
    उम्मीदों के सायों मे,
    "मिहिर"की ठौर चलें।

                             युवाओं को समर्पित

                                यशवीर गुर्जर
                         सम्पर्क 8595428233.

बुधवार, 15 अगस्त 2018

स्वतंत्रता के सेनानी, किसानों के मसीहा, बिजौलिया के गांधी विजय सिंह पथिक

स्वतंत्रता के सैनानी ,किसानों के मसीहा, बिजौलिया के गांधी विजय सिंह पथिक

( नन्दलाल गुर्जर )

“यश वैभव सुख की चाह नहीं, परवाह नहीं जीवन न रहे।

यदि इच्छा है, यह है जग में स्वेच्छाचार दमन न रहे।।

इन पंक्तियों के लेखक राजस्थान केसरी स्व. विजय सिंह पथिक ने बिजौलिया और बेगूं के किसान आंदोलन का सफल नेतृत्व कर राजस्थान में ही नहीं बल्कि देशभर में जन जागृति की लहर पैदा की। विजय सिंह पथिक का जन्म 27 फरवरी, 1873 की बुलन्दशहर जिले के गुठावलीकलां गांव में हुआ था। उनके दादा इन्द्र सिंह गुर्जर बुलन्दशहर स्थित मालागढ़ रियासत के दीवान (प्रधानमंत्री) थे। सन् 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में पथिक के दादा अंग्रेजों से लड़ते हुये वीरगति को प्राप्त हुये। विजय सिंह पथिक के पिता हमीर सिंह गुर्जर को भी क्रान्ति में भाग लेने के आरोप में सरकार ने गिरफ्तार किया था।

पथिक पर उनकी माँ कमला कंवर और परिवार की क्रान्तिकारी व देशभक्ति से परिपूर्ण पृष्ठभूमि का बहुत गहरा असर पड़ा। युवावस्था में पथिक जी का सम्पर्क रास बिहारी और सचिन सान्याल आदि क्रान्तिकारियों से हुआ। 1912 में ब्रिटिश सरकार ने भारत की राजधानी कलकत्ता से हटाकर दिल्ली लाने का निर्णय किया। इस अवसर पर भारत के गवर्नर जनरल लार्ड हाडिंग ने दिल्ली प्रवेश करने के लिए एक शानदार जुलूस का आयोजन किया। गवर्नर जनरल लार्ड हाडिंग पर दिल्ली प्रवेश के समय विजय सिंह पथिक ने अन्य क्रान्तिकारियों के साथ जुलूस पर बम फेंक कर लार्ड हार्डिग को मारने की कोशिश की। रास बिहारी बोस, जोरावर सिंह बारहठ, प्रताप सिंह बारहठ, विजय सिंह पथिक  व अन्य सभी सम्बन्धित क्रान्तिकारी अग्रेजो के हाथ नहीं आये और वे फरार हो गए।

विजय सिंह पथिक का मूल नाम भूप सिंह गुर्जर था। सन् 1915 में रास बिहारी बोस के नेतृत्व में लाहौर में क्रान्तिकारियों ने निर्णय लिया कि 21 फरवरी को देश के विभिन्न स्थानों 1857 की क्रान्ति की तर्ज पर सशस्त्र विद्रोह किया जाए। भारतीय इतिहास में इसे गदर आन्दोलन कहते है। योजना यह थी कि एक तरफ तो भारतीय ब्रिटिश सेना को विद्रोह के लिए उकसाय जाये दूसरी तरफ देशी राजाओं और उनकी सेनाओं का विद्रोह में सहयोग प्राप्त किया जाए। राजस्थान में इस क्रान्ति को संचालित करने का दायित्व विजय सिंह पथिक को सौंपा गया। उस समय पथिक फिरोजपुर षडयंत्र केस में फरार थे और खरवा (राजस्थान) में गोपाल सिंह खरवा के पास रह रहे थे। दोनो ने मिलकर दो हजार युवकों का दल तैयार किया और तीस हजार से अधिक बन्दूकें एकत्र की। दुर्भाग्य से अंग्रेजी सरकार पर क्रान्तिकारियों की देशव्यापी योजना का भेद खुल गया। देश भर में क्रान्तिकारयों को समय से पूर्व पकड़ लिया गया। विजय सिंह पथिक और गोपाल सिंह ने गोला बारूद्व भूमिगत कर दिया और सैनिकों को बिखेर दिया गया।

कुछ ही दिनों बाद अजमेर के अंग्रेज कमिश्नर ने पांच सौ सैनिकों के साथ विजय सिंह पथिक और गोपाल सिंह को खरवा के जंगलों से गिरफ्तार कर लिया और टाडगढ़ के किले में नजरबंद कर दिया गया। उन्हीं दिनों लाहौर षडयंत्र केस में पथिक का नाम उभरा और उन्हें लाहौर ले जाने के आदेश हुए। किसी तरह यह खबर पथिक जी को मिल गई और वो टाडगढ़ के किले से फरार हो गए।

गिरफ्तारी से बचने के लिए विजय सिंह पथिक ने अपना वेश राजस्थानी जैसा बना लिया और चित्तौडगढ़ क्षेत्र में रहने लगे। बिजौलिया से आये एक साधु सीताराम दास विजय सिंह पथिक से बहुत प्रभावित हुए और उन्होनें विजय सिंह पथिक को बिजौलिया आन्दोलन का नेतृत्व सम्भालने को आमत्रिंत किया। बिजौलिया उदयपुर रियासत में एक ठिकाना था। जहाॅ किसानों से भारी मात्रा में लाग बाग वसूली जाती थी और किसानों की दशा अति दयनीय  थी। पथिक 1916 में बिजौलिया पहुच गए और उन्हौनें आन्दोलन की कमान अपने हाथों में सम्भाल ली। माणिक्य लाल वर्मा ने विजय सिंह पथिक से प्रभावित होकर बिजौलिया ठिकाने की सेवा से त्यागपत्र दे दिया और आन्दोलन में कूद पडें।

1916 में विजय सिंह पथिक ने ऊपरमाल किसान पंचायत बोर्ड नाम से एक किसान संगठन का गठन किया। प्रत्येक गाॅव में किसान पंचायत की शाखाएॅ खोली गई। किसानों की मुख्य मांगे भूमि कर, अधिभारों एवं बेगार से सम्बन्धित थी। किसानों से 84 प्रकार के कर वसूले जाते थे। इसके अतिरिक्त युद्व कोष कर भी एक अहम मुददा था, एक अन्य मुददा साहूकारों से सम्बन्धित था जो कि जमीदारों के सहयोग और संरक्षण से किसानों को निरन्तर लूट रहे थे। पंचायत ने भूमि कर न देने का निर्णय लिया गया। किसान वास्तव में 1917 की रूसी क्रान्ति की सफलता से उत्साहित थे, पथिक ने उनके बीच रूस में श्रमिकों और किसानों का शासन स्थापित होने के समाचार को खूब प्रचारित किया था।

विजय सिंह पथिक ने कानपुर से प्रकाशित गणेश शंकर विद्यार्थी द्वारा सम्पादित पत्र प्रताप के माध्यम से बिजौलिया के किसान आन्दोलन को समूचे देश में चर्चा का विषय बना दिया। सन् 1919 में अमृतसर कांग्रेस में पथिक के प्रयत्न से लोकमान्य तिलक ने बिजौलिया सम्बन्धी प्रस्ताव रखा। पथिक ने बम्बई जाकर किसानों की करूण गाथा महात्मा गांधी को सुनाई। गांधी जी ने वचन दिया कि यदि मेवाड़ सरकार ने न्याय नहीं किया तो वह स्वयं बिजौलिया सत्याग्रह का संचालन करेगें। महात्मा गांधी ने किसानों की शिकायत दूर करने के लिए एक पत्र महाराणा को लिखा, पर कोई हल नहीं निकला। पथिक बम्बई यात्रा के समय, गांधी जी की पहल पर, यह निश्चय किया गया कि वर्धा से ‘‘राजस्थान केसरी’’ नामक पत्र निकाला जाए। पत्र सारे देश में लोकप्रिय हो गया, परन्तु पथिक जी का जमनालाल बजाज की विचारधारा से मेल नहीं खाया और वे वर्धा छोड़कर अजमेर चले गए।

सन् 1920 में पथिक जी के प्रयत्नों से अजमेर में ‘‘राजस्थान सेवा संघ’’ की स्थापना हुई। शीघ्र ही इस संस्था की शाखाएॅ पूरे प्रदेश में खुल गई। इस संस्था ने राजस्थान में कई जन आन्दोलनों का संचालन किया। अजमेर से ही विजय सिंह पथिक ने एक नया पत्र ‘‘नवीन राजस्थान’’ प्रकाशित किया। सन् 1920 में पथिक जी अपने साथियों के साथ नागपुर अधिवेशन में शामिल हुए और बिजौलिया के किसानों की दुर्दशा और देशी राजाओं की निरंकुशता को दर्शाती हुई एक प्रदर्शनी का आयोजन किया। महात्मा गांधी विजय सिंह पथिक  के बिजौलिया आन्दोलन से बहुत प्रभावित हुए।

कांग्रेस और गांधी जी यह समझने में असफल रहें कि सामन्तवाद साम्राज्यवाद का ही एक स्तम्भ है और ब्रिटिश साम्राज्यवाद के विनाश के लिए साम्राज्यवाद विरोधी संघर्ष के साथ-साथ सामन्तवाद विरोधी संघर्ष आवश्यक है। गांधी जी ने अहमदाबाद अधिवेशन में बिजौलिया के किसानों को हिजरत (क्षेत्र छोड़ देने) की सलाह दी। पथिक ने इसे अपनाने से यह कहकर इनकार कर दिया कि यह तो केवल हिजड़ो के लिए ही उचित है, पुरूषों के लिए नहीं।

सन् 1921 के आते-आते पथिक ने राजस्थान सेवा संघ के माध्यम से बेगू, पारसोली, भिन्डर, बासी और उदयपुर में शक्तिशाली आन्दोलन किए। बिजौलिया आन्दोलन अन्य क्षेत्र के किसानों के लिए प्रेरणा स्रोत बन गया था। ऐसा लगने लगा मानो राजस्थान में किसान आन्दोलन की लहर चल पडी है। इससे ब्रिटिश सरकार डर गई। इस आन्दोलन में उसे बोल्शेविक आन्दोलन की प्रतिछाया दिखाई देने लगी। दूसरी ओर कांग्रेस के असहयोग आन्दोलन शुरू करने से भी सरकार को स्थिति और बिगड़ने की भी आशंका होने लगी। अंतत सरकार ने राजस्थान के ए0 जी0 जी0 हालैण्ड को ऊपरमाल किसान पंचायत बोर्ड और राजस्थान सेवा संघ से बातचीत करने के लिए नियुक्त किया। शीघ्र ही दोनो पक्षों में समझौता हो गया। किसानों की अनेक मांगे मान ली गई। चैरासी में से पैंतीस लागतें माफ कर दी गई। जुल्मी कारिन्दे बर्खास्त कर दिए गए। किसानों की अपूर्व विजय हुई। इस बीच में बेगू में आन्दोलन तीव्र हो गया। मेवाड सरकार ने विजय सिंह पथिक को गिरफ्तार कर लिया और उन्हें पांच वर्ष की सजा सुना दी गई। लम्बे अरसे की केद के बाद पथिक अप्रैल 1927 को रिहा किए गए।

आजादी के अवसर पर प्रतिज्ञा लेते समय झंडाभिवादन पर जो झंडा गान सर्वत्र गाया गया उन्होंने स्वंय बनाया था, उन पंक्तियों को कौन नहीं जानता? ” प्राण मित्रो भले ही गवाना, पर झंडा ये निचे नहीं झुकाना”। पथिक जीवनपर्यन्त निःस्वार्थ भाव से देश सेवार में जुटे रहें। भारत माता का यह महान सपूत 28 मई, 1954 में चिर निद्रा में सो गया।

पथिक की देशभक्ति निःस्वार्थ थी और जब वह मरे उनके पास सम्पत्ति के नाम पर कुछ नहीं था, जबकि तत्कालीन सरकार के कई मंत्री उनके राजनैतिक शिष्य थे। राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री शिवचरण माधुर ने पथिक जी का वर्णन राजस्थान की जागृति के अग्रदूत महान क्रान्तिकारी के रूप में किया। विजय सिंह पथिक के नेतृत्व में संचालित हुए बिजौलिया आन्दोलन को इतिहासकार देश का पहला किसान सत्याग्रह मानते है। उनकी प्रतिज्ञा के कुछ अंश यहा उल्लेखित है:

“रेशम समझ कर रेजियों को सदा अपनाएंगे।

वे भी न यदि हमको मिलेगी,भस्म देह रमाएँगे।।

सूखे चने खाने पड़े, पकवान गिनकर खाएंगे।

आसन न होगा, घास पत्ते या पयाल बिछाएंगे।।

क्या विघ्न के राक्षस हमें भय का प्रपंच दिखाएंगे।

हम देश हित में यमराज से भी मुदित हाथ मिलाएंगे।।

तिल तिल अगर कटना पड़े, निर्भय खड़े कट जाएंगे।

पर वीर राजस्थान का हर्गिज न नाम डुबाएंगे।।”

इनका कहना  है –

“महान क्रांतिकारी विजय सिंह पथिक की चार पीढ़ियों ने राष्ट्र सेवा एवं राष्ट्र की आजादी हितार्थ लगातार बलिदान देकर अपने वंश का अंतिम चिराग तक शहीद कर दिया। पथिक जी खुद आजाद भारत में पूंजीवादी, अवसरवादी एवं वंशानुगत राजनीति में तिल तिल कर शहीद हुए। वर्तमान आरएसएस विजय सिंह पथिक के राजस्थान सेवा संघ का ही प्रारूप है। पथिक ने ही ऊपरमाल क्षेत्र में आजादी एवं पंचायत राज की नींव रखी थी।”

-महावीर पोसवाल
राष्ट्रीय अध्यक्ष- पथिक सेना

“ब्रिटिश भारत में तीन बड़े किसान आंदोलन हुए। चंपारण, बारडोली और बिजोलिया। बिजोलिया का आंदोलन इसलिए विशेष है कि यहाँ अंग्रेजों को झुकना पड़ा और समझौते में किसानों की सभी मांगें माननी पड़ी। बाद में बहुत विद्वानों ने इस आंदोलन का अध्ययन किया और सबने एक ही बात को रेखांकित किया कि इस आंदोलन की सफलता के पीछे विजय सिंह पथिक का कुशल नेतृत्व, कड़ी मेहनत और नेतृत्व क्षमता का ही पूरा योगदान था। “

– राजकुमार भाटी
अध्यक्ष- विजय सिंह पथिक शोध संस्थान

“भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में किसानों ने विजय सिंह पथिक की प्रेरणा से बढ़चढ़ कर भाग लिया। प्रथम सफल किसान आंदोलन विजय सिंह पथिक के नेतृत्व में बिजौलिया में हुआ। पथिक बिजौलिया के गांधी थे।”

-बद्रीप्रसाद गुरूजी
पूर्व विधायक मांडलगढ़ बिजौलिया

“हमारे बाबा विजय सिंह पथिक ने पूरी जिंदगी ही किसानों को संगठित करने में एवं अंग्रेजों से लड़ने में लगा दी थी। हमारे पूर्वज विजय सिंह पथिक ने बिजौलिया किसान आंदोलन का सफल संचालन और नेतृत्व कर किसानों को अधिकार दिलाया। देश में पंचायत राज की अवधारणा सबसे पहले पथिक जी ने रखी। हमे उनका वंशज होने में गर्व है।”

-बृजपाल राठी
संयोजक- पथिक फाउंडेशन एवं पथिक वंशज

“विजय सिंह पथिक एक महान क्रांतिकारी थे,उन्होंने अपना पूरा जीवन सामंतों और अंग्रेजों से संघर्ष करते हुए बिताया ,उनके द्वारा बिजौलिया किसान आंदोलन का नेतृत्व किया गया ,जिसकी इतिहास में कोई दूसरी मिसाल नहीं है ,इतिहास लेखकों ने महानतम स्वाधीनता सैनानी विजय सिंह पथिक के साथ न्याय नहीं किया । आज जरूरत है उनके संघर्ष को भारतवासियों के सामने लाया जाये।”

-भंवर मेघवंशी (  बहुजन चिंतक )

“किसानों को असली आजादी बिजौलिया किसान आंदोलन के जनक विजय सिंह पथिक ने किसानों पर लगने वाले करों से छुटकारा दिलवाकर दिलाई। युगो युगों तक पथिक क्षेत्र में किसानों के प्रेरणास्त्रोत के रूप में याद किए जाएंगे।”

-भैरूलाल जाट
किसान नेता-पूर्व उप प्रधान मांडलगढ़

“खेराड, ऊपरमाल, बेगूं, बरड़, बिजौलिया, मांडलगढ़ क्षेत्र में विजय सिंह पथिक ने ही सर्वप्रथम किसानों को संगठित कर किसान आंदोलन का शंखनाद किया। पथिक किसानों के मसीहा थे।”

– भैरूलाल गुर्जर
किसान नेता एवं पूर्व सरपंच

“बिजौलिया किसान आंदोलन के सफल नेतृत्वकर्ता विजय सिंह पथिक ने राजस्थान सेवा संघ की स्थापना कर सम्पूर्ण राजपुताना में क्रांति का शंखनाद किया। राजस्थान शब्द का ईजाद राजस्थान केसरी विजय सिंह पथिक ने किया। पथिक किसानों के मसीहा एवं राष्ट्रीय नेता थे।”

-राकेश कुमार आर्य
प्रधान संपादक – उगता भारत मीडिया समूह

“प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की विरासत में पले बडे विजय सिंह पथिक (भूप सिंह गुर्जर) क्रान्ति चेता का पदार्पण मानो केवल भारत माँ की बेडियों के लिए ही जन्मा तथा बिजौलिया  किसान आंदोलन का पुरोधा जिनकी हुंकार से राजशाही व अंग्रेज कांपता था। पथिक जी हम सबके प्रेरणास्त्रोत है।”

-यशवीर गुर्जर
कोषाध्यक्ष-विजय सिंह पथिक शोध संस्थान

( लेखक नन्द लाल गुर्जर पथिक टुडे के संपादक एवं सामाजिक कार्यकर्ता है )