मंगलवार, 7 मार्च 2017

अंतरराष्ट्रीय गुर्जर दिवस (22 मार्च - नव शक संवत्सर)

अन्तराष्ट्रीय गुर्जर दिवस (२२ मार्च - नव शक संवत्सर)
                                            
डा. सुशील भाटी

गुर्जर इस मायने में एक अन्तराष्ट्रीय समुदाय हैं कि यह भारत, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, ईरान और मध्य एशिया के कुछ देशो में अविस्मरणीय काल से रहते आ रहा हैं| इनका इतिहास ईसा की पहली तीन शताब्दियों (0- 300 ईस्वी) के कुषाण साम्राज्य काल तक जाता हैं| कुषाणों में कनिष्क सबसे प्रतापी सम्राट हुआ हैं जिसने एक विशाल साम्राज्य का निर्माण किया| कनिष्क के साम्राज्य में लगभग वो सभी देश आते थे जहाँ आज गुर्जरो की आबादिया हैं| उसका साम्राज्य मध्य एशिया स्थित काला सागर से लेकर पूर्व में उडीसा तक तथा उत्तर में चीनी तुर्केस्तान से लेकर दक्षिण में नर्मदा नदी तक फैला हुआ था| उसके साम्राज्य में वर्तमान उत्तर भारत, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, उज्बेकिस्तान का एक हिस्सा, तजाकिस्तान का हिस्सा और चीन के यारकंद, काशगर और खोतान के इलाके थे| कनिष्क भारतीय इतिहास का एक मात्र सम्राट हैं जिसका राज्य दक्षिणी एशिया के बाहर मध्य एशिया और चीन के हिस्सों को समाये हुएथा| वह इस साम्राज्य पर चार राजधानियो से शासन करता था| आधुनिक पाकिस्तान स्थित पुरुषपुर (आधुनिक पेशावर) उसकी मुख्य राजधानी थी| मथुरा (भारत), तक्षशिला और बेग्राम (अफगानिस्तान) उसकी अन्य राजधानिया थी|

कनिष्क के राज्य काल में भारत में व्यापार और उद्योगों में अभूतपूर्व तरक्की हुई क्योकि मध्य एशिया स्थित रेशम मार्ग, जोकि समकालीन अंतराष्ट्रीय व्यापार मार्ग था तथा  जिससे यूरोप और चीन के बीच रेशम का व्यापार होता था, पर कनिष्क का कब्ज़ा था| भारत के बढते व्यापार और आर्थिक उन्नति के इस काल में तेजी के साथ नगरीकरण हुआ| इस समय पश्चिमिओत्तर भारत में करीब 60 नए नगर बसे और पहली बार भारत में कनिष्क ने ही बड़े पैमाने सोने के सिक्के चलवाए|

कनिष्क के विशाल अंतराष्ट्रीय साम्राज्य में हमें सार्वदेशिक संस्कृति का विकास देखने को मिलता हैं| कुषाण/कसाना समुदाय एवं उनका नेता कनिष्क मिहिर (सूर्य) और अतर (अग्नि) के उपासक थे| उसके विशाल साम्राज्य में विभिन्न धर्मो और रास्ट्रीयताओं के लोग रहते थे| किन्तु कनिष्क धार्मिक दृष्टीकोण से बेहद उदार था, उसके सिक्को पर हमें भारतीय, ईरानी-जुर्थुस्त और ग्रीको-रोमन देवी देवताओं के चित्र मिलते हैं|  कनिष्क ने बोद्ध धर्म को भी संगरक्षण प्रदान किया|

कनिष्क ने शक संवत के नाम से एक नए संवत शरू किया जो आज भी भारत में चल रहा हैं|शक संवत संवत को सम्राट कनिष्क ने अपने राज्य रोहण के उपलक्ष्य में 78 ईस्वी में चलाया था| इस संवत कि पहली तिथि चैत्र के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा (22 मार्च) होती हैं जोकि विश्व विख्यात सम्राट कनिष्क महान के राज्य रोहण की वर्ष गाठ हैं|

प्राचीन काल में यह संवत भारत में सबसे अधिक प्रयोग किया जाता था| भारत में शक संवत का व्यापक प्रयोग अपने प्रिय सम्राट के प्रति प्रेम और आदर का सूचक हैं और उसकी कीर्ति को अमर करने वाला हैं| प्राचीन भारत के महानतम ज्योतिषाचार्य वाराहमिहिर (500 इस्वी) और इतिहासकार कल्हण (1200 इस्वी) अपने कार्यों में शक संवत का प्रयोग करते थे| उत्तर भारत में कुषाणों और शको के अलावा गुप्त सम्राट भी मथुरा के इलाके में शक संवत का प्रयोग करते थे| दक्षिण के चालुक्य और राष्ट्रकूट और राजा भी अपने अभिलेखों और राजकार्यो में शक संवत का प्रयोग करते थे|

शक संवत भारतीय संवतो में सबसे ज्यादा वैज्ञानिक, सही तथा त्रुटिहीन हैं| शक संवत भारत सरकार द्वारा कार्यलीय उपयोग लाया जाना वाला अधिकारिक संवत हैं| शक संवत का प्रयोग भारत के ‘गज़ट’ प्रकाशन और ‘आल इंडिया रेडियो’ के समाचार प्रसारण में किया जाता हैं| भारत सरकार द्वारा ज़ारी कैलेंडर, सूचनाओ और संचार हेतु भी शक संवत का ही प्रयोग किया जाता हैं| शक संवत भारत का राष्ट्रीय संवत हैं|

आर्केलोजिकल सर्वे आफ इंडिया के पहले महानिदेशक अलेक्जेंडर कनिघंम ने आर्केलोजिकल सर्वे रिपोर्ट 1864 में कुषाणों की पहचान आधुनिक गुर्जरों से की है और उसने माना है कि गुर्जरों के कसाना गौत्र के लोग कुषाणों के वर्तमान प्रतिनिधि है। उसकी बात का महत्व इस बात से और बढ़ जाता है कि गुर्जरों का कसाना गोत्र क्षेत्र विस्तार एवं संख्याबल की दृष्टि से सबसे बड़ा है। कसाना गौत्र अफगानिस्तान से महाराष्ट्र तक फैला है और भारत में केवल गुर्जर जाति में मिलता है।

गुर्जरों के सबसे पहले राज्य “गुर्जर देश” की राजधानी भिनमाल के इतिहास से कुषाण सम्राट कनिष्क के साथ एक गहरा नाता हैं| जिससे गुर्जरों को कुषाणों से जोड़ा जाना सही साबित होता हैं| सातवी शताब्दी में भारत में गुर्जरों की राजनैतिक शक्ति का उभार हुआ| उस समय आधुनिक राजस्थान गुर्जर देश कहलाता था| इसकी राजधानी दक्षिणी राजस्थान में स्थित भिनमाल थी| भिनमाल के विकास में कनिष्क का बहुत बड़ा योगदान था| प्राचीन भिनमाल नगर में सूर्य देवता के प्रसिद्ध जगस्वामी मन्दिर का निर्माण काश्मीर के राजा कनक (सम्राट कनिष्क) ने कराया था। मारवाड़ एवं उत्तरी गुजरात कनिष्क के साम्राज्य का हिस्सा रहे थे। कनिष्क ने वहाँ ‘करडा’ नामक झील का निर्माण भी कराया था। भिनमाल से सात कोस पूर्व ने कनकावती नामक नगर बसाने का श्रेय भी कनिष्क को दिया जाता है। कहते है कि भिनमाल के वर्तमान निवासी देवडा लोग एवं श्रीमाली ब्राहमण कनक (कनिष्क) के साथ ही काश्मीर से आए थे। देवड़ा लोगों का यह नाम इसलिए पड़ा क्योंकि उन्होंने जगस्वामी सूर्यदेव का मन्दिर बनाया था। राजा कनक से सम्बन्धित होने के कारण उन्हें सम्राट कनिष्क की देवपुत्र उपाधि से जोड़ना गलत नहीं होगा।

गुर्जरों के पूर्वज कनिष्क ने एक अंतराष्ट्रीय साम्राज्य का निर्माण किया और वहाँ एक सार्वदेशिक संस्कृति (Cosmopolitan culture) का विकास किया| आज भी कनिष्क के व्यक्तित्व और कुषाण साम्राज्य की विश्व में एक पहचान हैं, अतः कनिष्क के राज्य रोहण दिवस २२ मार्च को अंतराष्ट्रीय गुर्जर दिवस के रूप में मनाया जाना उचित हैं|

सन्दर्भ

1. भगवत शरण उपाध्याय, भारतीय संस्कृति के स्त्रोत, नई दिल्ली, 1991,
2. रेखा चतुर्वेदी भारत में सूर्य पूजा-सरयू पार के विशेष सन्दर्भ में (लेख) जनइतिहास शोध पत्रिका, खंड-1 मेरठ, 2006
3. ए. कनिंघम आरकेलोजिकल सर्वे रिपोर्ट, 1864
4. के. सी.ओझा, दी हिस्ट्री आफ फारेन रूल इन ऐन्शिऐन्ट इण्डिया, इलाहाबाद, 1968 
5. डी. आर. भण्डारकर, फारेन एलीमेण्ट इन इण्डियन पापुलेशन (लेख), इण्डियन ऐन्टिक्वैरी खण्ड X L 1911
6. जे.एम. कैम्पबैल, भिनमाल (लेख), बोम्बे गजेटियर खण्ड 1 भाग 1, बोम्बे, 1896
7. विन्सेंट ए. स्मिथ, दी ऑक्सफोर्ड हिस्टरी ऑफ इंडिया, चोथा संस्करण, दिल्ली, 1990

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