गुरुवार, 9 मार्च 2017

गुर्जर आरक्षण - समस्या और समाधान : मोहित तोमर

गुर्जर आरक्षण : समस्या और समाधान ::
राजस्थान में गुर्जर आरक्षण का तार्किक समाधान (सवैंधानिक दायरे में एवं 50% की आरक्षण सीमा में ):-

राजस्थान में वर्तमान में आरक्षण इस प्रकार है :- OBC. 21% , SC. 16% , ST. 12%

ओ. बी. सी. एक विषम वर्ग है | इस वर्ग में आने वाली जातियों के पिछड़ेपन का स्तर (शैक्षणिक और सामजिक) भी भिन्न है | इस लिए देश के कई राज्यों ने अन्य पिछड़े वर्ग का वर्गीकरण किया हुआ है ये राज्य विशेष रूप से है : बिहार , महाराष्ट्र, आंध्रप्रदेश, तिलंगाना और तमिलनाडु आदि | सुप्रीम कोर्ट ने इन्द्रा सहानी केस में कहा था कि अन्य पिछड़ा वर्ग के वर्गीकरण में कोई सवैधानिक बाध्यता नहीं है साथ ही आंध्रप्रदेश राज्य में पिछड़े वर्ग के वर्गीकरण को तर्कसंगत बतलाया था |
राजस्थान सरकार के राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग द्वारा बनाये गए इसरानी आयोग ने भी अपनी रिपोर्ट में कहा है कि सभी पिछड़ी जातियों का शैक्षणिक और सामाजिक स्तर एक सामान नहीं है | ये ही नहीं केंद्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग ने केंद्रीय पिछड़े वर्ग को असमान रूप से पिछड़ी हुई जातियों का समूह माना है और केंद्र सरकार को भेजे अपने ड्राफ्ट नोट में पिछड़े वर्ग को तीन उपवर्गों में विभाजित करने की पुरजोर शिफारिश की है | वास्तव में ये ही सामाजिक न्याय है |
संविधान की उद्देशिका, सभी नागरिकों को सामाजिक, आर्थिक व राजनैतिक न्याय व स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व की गारंटी देती है। अनुच्छेद 14 कहता है, ‘राज्य, भारत के राज्यक्षेत्र में किसी व्यक्ति को विधि के समक्ष समता से या विधियों के समान संरक्षण से वंचित नहीं करेगा’ इसका अर्थ यह है कि जो ‘असमान’ हैं, उनके साथ सामान व्यवहार नहीं किया जा सकता। सामाजिक व शैक्षणिक दृष्टि से पिछड़े समुदायों को अगड़ों के समकक्ष लाने के लिए विशेष प्रयासों की आवश्यकता है। संविधान के अनुच्छेद 16(4) व 15(4), राज्य को सामाजिक व शैक्षणिक दृष्टि से पिछड़े समुदायों की बेहतरी के लिए नौकरियों व शिक्षण संस्थानों में आरक्षण जैसे विशेष प्रावधान करने का अधिकार देते हैं।
वंचित वर्गो के हितो कि रक्षा के लिए भारत सरकार द्वारा की गई अंतराष्ट्रीय संधियों के प्रवधानों कि अनुपालना भी केंद्रीय एवम राज्य सरकारों का दायित्व व बाध्यता है |
राजस्थान हाई कोर्ट ने विशेष पिछड़ा वर्ग के केस (संख्या CWP – 1645/2016 ) में 09 दिसंबर 2016 को दिए अपने निर्णय में  पृष्ठ संख्या 189 पर प्रमाणिक संख्यात्मक आकड़ो के आधार पर विशेष रूप से कहा है कि ओ.बी.सी. के लिए आरक्षित पदों में 30 % पद ‘’ जाट ” जाति से भर जाते है | यदि इसमें तीन अन्य जातियो को जोड़ दिया जाए तो यह आकड़ा 60 % हो जाता है  यानी बाकी 77 पिछड़ी जातियो के लिए मात्र 40 % आरक्षण शेष रह जाता है | अत : उसने आरक्षण का समुचित लाभ पा चुकी जातियो को आरक्षण कि परिधि से बाहर करने की बात कही है |
अत : सामाजिक न्याय कि दृष्टि से ओ.बी.सी वर्ग का वर्गीकरण अति आवश्यक है क्योकि ऐसा होने पर जहाँ एक ओर माननीय सर्वोच्च न्यायालय की आरक्षण हेतु अधिकतम 50 % सीमा की पालना होगी वही दूसरी ओर वंचित पछड़े वर्गों के अधिकारो का हनन व् अतिक्रमण नहीं होगा |

झारखंड राज्य में अत्यंत पिछड़ा व पिछड़ा वर्ग के केस (संख्या:3430/2006, आदेश दिनांक : 08 अगस्त 2006 ) में माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने अपने निर्णय में स्पष्ट रूप से कहा है कि असमान रूप से पिछड़ी जातियो को एक वर्ग में एक साथ रखना भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 के अनुसार उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है, क्योकि आसमान जातियो के बीच समानता का व्यवहार करना असवैधानिक है और वंचित वर्गो के मौलिक अधिकारों का हनन है |
अत: राजस्थान प्रदेश के पिछड़े वर्ग में आने वाली जातियों को यदि अग्रलिखित मानको के आधार तीन बराबर उप वर्गो में जातियों को रखा जाए तो समस्या का स्थाई समाधान निकला जा सकता है :-

अ).  8% आरक्षण अत्यंत पिछड़ी जातियां (M.B.C.) परम्परागत कार्य करने वाली जातियां :
   ठठेरा, तेली, तमोली ,लोहार ,लोधा, मेव, गाडीत नागौरी , काछी, डकोत , फ़कीर आदि |

ब).  7% आरक्षण विशेष पिछड़ी जातियों (S.B.C.) के लिए (पशुपालक,चरवाहा, घुमन्तु, अर्द्धघुमन्तू व् विमुक्त जातियां :    गाड़िया लोहार , रायका रेबारी, गूजर, बंजारा, बालदिया, गडरिया, घोसी आदि |

स ).  7% आरक्षण पिछड़ी जातियां (B.C.) कृषि पर आधारित जातियां : यादव, चारण, कुमावत , विश्नोई , सैनी आदि |

उच्च न्यायलय व सर्वोच्च न्यायलय को सरकार की बनाई नीतियों की न्यायिक समीक्षा करने का अधिकार है यदि वो भारतीय नागरिको के मौलिक अधिकारों का उलंघन कर रही हो | राजस्थान सरकार विशेष पिछड़ा वर्ग का केस पहले ही उच्च न्यायलय में हार चुकी है अत : मेरा वंचित वर्ग के सदस्यो से अनुरोध है कि वो अपना पक्ष उच्चतम न्यायलय में सविधान में प्रदत प्रावधानों के अनुरूप अवश्य रखे क्योकि उसका निर्णय मेरिट के आधार पर अंतिम व सर्वमान्य होगा|

साथ ही यहाँ यह बतलाना भी जरूरी है कि बंजारा, गाड़िया लोहार व गूजर जाति को अनुसूचित जनजाति (S .T .) .में सम्मलित करने की मांग केंद्र सरकार के पास इसलिए लंबित पड़ी है क्योकि राजस्थान सरकार ने जनजातीय मंत्रालय के बार - बार आग्रह के बावजूद इन जातियो की एथेनोग्राफिक प्रोफाइल रिपोर्ट नहीं भेजी है | इस ही कारण केंद्र सरकार के इस विषय में संसद में दिए आश्वासन पर अग्रिम कार्यवाही संभव नहीं हो पा रही है |

अत: राजस्थान सरकार से अनुरोध है कि एथेनोग्राफिक प्रोफाइल रिपोर्ट अविलम्ब भेजे जिससे दशको से लंबित इनकी मांग पर आगे विचार हो सके अन्यथा न्याय में देरी, न्याय से इनकार ही तो है |

अधिकारों की इस लड़ाई में गुर्जरो समेत सभी वंचित वर्गो को मेरी ओर से हार्दिक शुभ कामनाये !

कोई भी लक्ष्य मनुष्य जीवन से बड़ा नहीं, हारा वो ही जो लड़ा नहीं |

सादर,
मोहित तंवर
मो० : 09818120899
                       ई० मेल: mohit_tomar@hotmail.com
(मेरा यह लेख गुर्जरो समेत समस्त वंचित वर्गों को समर्पित)

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