रविवार, 15 जनवरी 2017

कश्मीर का दूसरा चेहरा

जिस तक दिल्ली में बैठा मीडिया और अभिजात्य राजनैतिक वर्ग कभी नही पहुचता। ये वतनपरस्त कश्मीरी मुसलमान गुर्जर हैं जिनके बारे में आम भारतीय उतना ही अनजान है जितना कश्मीर के बारे में। गुर्जर जम्मू कश्मीर की जनसँख्या का 20% हैं जो किसान-पशुपालको की बहादुर कौम है और 1947 से अब तक आतंकवाद से लडती आ रही है। लम्बे कद, लम्बी पैनी नाक और ऊँची पगड़ी वाले ये गुर्जर इनकी गूजरी भाषा, जज्बे और भारत में अपने सम्रद्ध इतिहास के लिए जाने जाते हैं। इनके पुर्वज गुर्जर प्रतिहारो ने ही अरब सेनाओ को 300 सालो तक धुल चटाई थी। विभाजन के समय जम्मू जिले में सांप्रदायिक हिंसा का दंश झेलने के बावजूद पाकिस्तान समर्थित कबायली आक्रमणकरियो के दांत खट्टे करके गुर्जरों ने देशभक्ति के जज्बे का परिचय दे दिया था। 1965 की लडाई और कारगिल युद्ध से पूर्व पाकिस्तानी सेना की मौजूदगी कि जानकारी भी इन्ही गुर्जरों ने दी थी जिसके बदले में आतंकियों द्वारा मोहम्मादीन गुर्जर को शहीद कर दिया गया था। पाकिस्तान के साथ हुए युद्धों में सेना को रसद सामग्री की आपूर्ति इन्ही गुज्जरो और इनके घोड़ो के जिम्मे रहती है। 2003 में गुज्जरो की मदद से ही सेना ने ऑपरेशन सर्प विनाश चलाया था हिल काका में छुपे आतंकियों से गुज्जर 10 दिनों तक लडे और 700 आतंकियों को दफ़नाने के बजाय कुत्तो को खिला दिया था। सरपंच आरिफ गुज्जर को आतंकियों ने जिहादी बनने के लिए 52 लाख रूपये की पेशकश की थी जिसे गुर्जर ने ठुकरा दिया गया था। सर्प विनाश के बदले में पाकिस्तानी आतंकियों ने तेली कत्था नरसंहार किया था जिसमे 15 गुर्जरों को सोते हुए शहीद कर दिया था। 90 के दशक में हजारो गुर्जर आतंक से लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए। ये लोग सेना में अपनी गुर्जर रेजिमेंट चाहते हैं लेकिन आजतक इनके गाँव तक सड़क नही बन पाई। अलगाववादी इन्हें गद्दार और सेना के मुखबिर कहते हैं। उग्रवाद जब चरम पर था उन दिनों गुर्जर नेता चौधरी अब्दुल खटाणा के छोटे भाई का आतंकियों ने अपहरण कर लिया था, गुर्जरों ने अपनी भाषा में जवाब देते हुए आतंकी कमांडर के बाप का अपहरण कर लिया और फिरौती लेकर ही छोड़ा। इसी तरह रात में एक घर में घुसे तीन हथियारबंद आतंकियों को एक गुर्जर लड़की रुखसाना चौधरी ने कुल्हाड़ी से काट डाला। ये सिर्फ एक चंद उदहारण हैं ऐसे वाकये कश्मीर में रोजाना हुआ करते हैं। विख्यात गूजरी लोक गायिका बेगम जान ने आतंकियों की धमकियों और अपने बेटे के कुर्बान हो जाने के बावजूद हांर नही मानी व गायिकी जारी रखी। सेना और भारत को सहयोग देने के बावजूद सेना द्वारा गुज्जरो को तंग करने की खबरे भी आती रही। आज कश्मीरी गुज्जर समुदाय व्यथित है कि हमने आतंकवाद से लड़ने में अपना सब कुछ बलिदान कर दिया लेकिन भारत सरकार हमारे लिए न रेजिमेंट बना पाई न हमारे बच्चो के लिए स्कूल, दिल्ली में बैठे नेता गुर्जरों की तारीफ में सिर्फ कसीदे तो पढ़ देते हैं लेकिन जमींन पर कुछ नही हो पता। गुर्जर नेता चौधरी कमर रब्बानी ने पिछले साल राजौरी में सम्मलेन करके कहा था कि सरकार गुर्जरों को जंगलो से निकाल्कर मुख्य धारा में लाये तो आजादी की मांग करने वालो को गुर्जर करारा जवाब देंगे। आज जम्मू कश्मीर में गुज्जर शब्द के दो अर्थ हैं एक समुदाय और दूसरा भारत समर्थन करने वाले को अलगाववादी गुज्जर की संज्ञा देते हैं। विषम परिस्थितियों के बावजूद कश्मीरी गुर्जर युवा राज्य प्रशासन से लेकर केन्द्रीय प्रशासनिक सेवाओ और मेडिकल व IITs में अपनी उपस्थिति भी दर्ज करा रहे हैं। बेहतर होगा कि कागजो पर नीतियाँ बनाने वाले नौकरशाह गुर्जर समुदाय को सशक्त करे। इनकी रेजिमेंट बनाये जाने से न केवल सुरक्षा की भावना आएगी बल्कि रोजगार मिलेगा, जंगलो में पशुपालन कर रहे गुर्जरों को घाटी में गाँवो की शक्ल में बसा दिया जाये और 90 के दशक की तर्ज पर गुर्जर महिलाओ को हथियार दिए जाये तो ये गुर्जर आतंकियों के मंसूबो पर पानी फेरने में सक्षम हैं।

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