पांच प्रतिशत एसबीसी आरक्षण नही मिलने का सबसे बडा कारण समुदाय के राजनेता
साथियों, आप सभी को पता ही है कि राजस्थान उच्च न्यायालय द्वारा 09 दिसम्बर 2016 को गुर्जर समाज सहित एसबीसी में शामिल जातियों का पांच प्रतिशत आरक्षण पूर्ण तय रद्द कर दिया गया। इस पांच प्रतिशत आरक्षण के लिये गुर्जर समाज पिछले करीब 11 वर्षो से कठिन संघर्ष कर रहा था, सैकडो गुर्जरों ने गोलिया खायी और इसके लिये 72 लोगों ने अपनी जान दी, हजारो लोग जेल गये कुछ तो आज भी जेलों मे है, हजारो लोगो के घर बेघर हो गये। आखिर इस दीर्घकालीन संघर्ष का परिणाम 9 दिसम्बर को शून्य पर आकर रुक गया। इस निराशाजनक परिणाम ने प्रदेश को फिर से आंदोलन मे झुलसने के लिये आमंत्रित कर दिया है। इस आरक्षण को देने के लिये प्रदेश मे कई सरकार आयी और गयी मगर स्थायी समाधान किसी भी सरकार ने नही किया और शायद इन राजनेताओं ने इसका स्थायी समाधान उचित नही समझा। इसको जानबूझ कर अटका दिया गया। लेकिन कई बडे आंदोलन के बाद वर्तमान राज्य सरकार ने ये 5 प्रतिशत एसबीसी आरक्षण 16 अक्टूम्बर 2015 को विधानसभा में अलग से अध्यादेश लाकर गुर्जर समाज सहित पिछडी पांच जातियों के लिये लागू किया गया था। जिसमें आयोग ने सभी प्रक्रिया व सर्वे लिये थे परंतु इसके लागू होने के अगले ही दिनों मे समता समिति के कैप्टन गुरविन्दर सिंह द्वारा इसको खारीज करने के लिये हाइकोर्ट मे याचिका लगाई थी। उसके उपरांत कई बार सुनवाई हुई थी और न्यायालय मे मई 2016 को सरकार द्वारा आरक्षण को सुरक्षित रखा गया था लेकिन 9 दिसम्बर 2016 को हाईकोर्ट ने 5 प्रतिशत आरक्षण को पूर्णतय खारीज कर दिया है।
न्यायालय का निर्णय जिसमें 199 पेज की काफी मिली है। इस निर्णय का क्या सारांश है, कोर्ट ने किस आधार से एसबीसी आरक्षण को खत्म किया गया था, देखे एक नजर :-
1. विकास अध्ययन संस्थान (IDS) द्वारा किया गया सर्वे या रिपोर्ट अपुर्ण है, अधूरा है, पूर्ण नही है, कमिया है , सर्वे सभी 82 जातियों का चाहिये था तब पिछड़ापन का पता चलता, जिस समाज, समुदाय की प्रगति हो गयी है उन्हे निकालना चाहिये था। ओबीसी आयोग ने अपना सही कार्य नही किया।
2. आरक्षण का आधारभूत केवल जाति नही होती है। आरक्षण की श्रेणी या दर्जा हर वर्ग के लिये होता है।
3. राज्य सरकार ने आरक्षण बिना सर्वे व प्रक्रिया के बिना आधार पर नोटिफीकेशन को खारिज कर दिया।
4. कोर्ट ने कहा की यह एक राजनैतिक निर्णय लगता है जो सरकार ने किसी आंदोलन के दबाब में आकर ये आरक्षण दिया है।
5. आयोग की रिपोर्ट मे कई खामियों के कारण, अपुर्ण होने के कारण पांच प्रतिशत एसबीसी आरक्षण को खारिज किया जाता है।
राज्य सरकार ने गुर्जर आरक्षण संघर्ष समिति के साथ लिखित मे ये समझौता किया था कि इस कानून को पूर्णतया सुरक्षित रखने के लिये, इस कानून को नवीं अनूसूची मे डालने के लिये कटीबद्द है इस कानून पर आने वाली हर चुनौती को राज्य सरकार रोकेगी और पांच प्रतिशत आरक्षण का लाभ एसबीसी वर्ग को मिलता रहेगा। गुर्जर समाज को विश्वास में लाने के लिये और पांच प्रतिशत आरक्षण पर कोई आंच नही आये इसके लिये राज्य सरकार ने तीन मंत्रीयो (जिसमें एक गुर्जर समाज से लिया) की अलग से एक कमेटी नियुक्त की जो समय-समय पर संघर्ष समिति के सुझाव पर कार्य करने के लिये लिखित मे वचनबद्द थी। एसबीसी वर्ग के लोगों को इस नये कानून का पांच प्रतिशत फायदा मिलने लगा ही था की राजनिति ने फिर एक नई चादर डाल दी और आरक्षण खारीज कर दिया गया। जिस दिन से आरक्षण समाप्त होने का निर्णय आया है तभी से प्रदेश के गुर्जरों के साथ-साथ देशभर के गुर्जर समुदाय आक्रोश मे है और गुर्जर आरक्षण संघर्ष समिति के संयोजक कर्नल किरोडी सिंह बैन्सला के एक मात्र आदेश के लिये प्रतीक्षारत है, समाज के अंदर भारी रोष और आक्रोश है जिसका परिणाम क्या होगा कुछ नही कहा जा सकता है। लेकिन कर्नल बैंसला ने तत्काल आपातकालिन बैठक बुलायी और संघर्ष समिति मे लिये गये निर्णय के बाद कर्नल बैंसला ने समाज के लोगों को धैर्य और संयमता बरतने का आग्रह किया है उन्होने कहा कि जल्दबाजी में भी जो कार्य किए जाते हैं वे सुलझने के स्थान पर उलझ जाते हैं। तब उनको सुलझाने में और अधिक कठिनाइयां आती है अर्थात् अनुचित तरीके से काम नहीं करना चाहिए, सावधान और तैयार रहने का आग्रह किया और इसी मध्य कई प्रदेशों के नेता जैसे गुजरात के हार्दिक पटेल सहित कई नेताओं ने मुलाकात की और गुर्जर नेताओ के साथ साथ अन्य समाज के नेता भी गुर्जर समाज के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलने की बात कर रहे है। इससे आगे की रणनिति के लिये कर्नल बैंसला को, गुर्जर समाज को कुछ सुनियोजित कार्य करने के लिये मजबूती मिल रही है साथ ही कर्नल बैंसला ने सरकार को चेताया की राज्य सरकार जल्द कोई समाधान करे नही तो इस बार जो अंजाम होगा उसे दुनिया देखेगी और तमाम समाचार पत्रो, मीडीया, सोशल मीडीया मे आ रही खबरो से ये स्पष्ट है कि न्यायालय के फैंसला आने के बाद प्रदेश के गुर्जर समाज एकजुट होकर के गांव, तहसील, जिला स्तर पर वैठक कर रहे है, हर स्तर पर सरकार को ज्ञापन दे रहे है समाज के समस्त सामाजिक संगठन, कार्यकर्त्ता राज्य सरकार का विरोध कर रहे है और अब समाज की इस एकजुटता ने सरकार को स्पष्ट आगाह कर दिया है संपूर्ण एसबीसी वर्ग कर्नल बैंसला के नेतृत्व में एकजुट है और इस अन्याय के खिलाफ किसी भी हद तक जा सकते है इसलिये सरकार जल्द इस संवैधानिक हक पर कोई समाधान करे जिससे समाज को फिर से आंदोलन करने के लिये मजबूर नही होना पड़े और देश की निर्दोष आम जनता को कठिनाईयों का सामना ना करना पड़े और ना ही देश की प्रगति पर कोई रुकावट आये।
गुर्जर समाज की राजनैतिक कमी के कारण ही आरक्षण पर नही हुआ स्थायी समाधान:-
प्रदेश के गुर्जर समाज सहित कई समुदाय सामाजिक, आर्थिक शैक्षणिक रूप से अत्यधिक पिछडा हुआ समाज है जिनका मुख्य कार्य पशुपालन, कृषि रहा है, सरकारी विभागों में गुर्जर समाज की हिस्सेदारी बहुत कम थी, सरकारी सुविधा व योजनाओं से समाज सदियों से अछूत रहा। इसी बीच भारतीय सेना से सेवानिवृत होकर आये कर्नल किरोडी सिंह बैंसला ने समाज की हालत देख उनके अंदर के ह्रदय को झकझोर दिया और फिर वही से शुरू हुई समाज के लिये आरक्षण की लडाई। उन्होने गांव-गांव जाकर समाज को जागृत किया एक नई चेतना लाये और 16 सितम्बर 2006 को हिण्डौन सिटी में रेल रोको आंदोलन किया। उसके बाद 29 मई 2007 को कर्नल बैंसला के नेतृत्व मे प्रदेश के गुर्जरो द्वारा दौसा जिले के पाटोली में नेशनल हाइवे पर शांतिप्रिय आंदोलन किया गया, मगर तत्कालीन सरकार के गोली चलाने के आदेश के कारण आंदोलन ने अचानक एक हिंसक रूप ले लिया जिसमें कई लोगों की जान गई, इस आंदोलन ने प्रदेश ही नही देश के हर प्रांत के गुर्जर को एकजुट किया। देश के हर प्रांत मे आंदोलन किया गया इस आंदोलन ने केंद्र की सत्ता को भी हिला दिया। गुर्जर समुदाय के कुछ विधायकों ने समाज हित को सर्वोपरी समझते हुए अपने पद से इस्तीफा दे दिया जिससे आंदोलन को मजबूती मिली और अंत मे समाज के द्वारा रखी बातों पर सरकार ने अमल तो किया पर आरक्षण मुद्दे पर समाज के कुछ महत्वाकांक्षी प्रतिनिधियों को साथ लेकर राजनैतिक खेल खेलना शुरू किया। उसके बाद 23 मई 2008 को भरतपुर के पिलूपुरा मे फिर से रेल रोको आंदोलन किया गया आंदोलन ने उग्र रूप धारण किया पुलिस ने गोलीबारी की जिसमें कई लोगों की जान गई। समाज कर्नल बैंसला के साथ-साथ बेबसी के आंसू रोने लगे कई दिनों तक मृत लोगों की लाशों को गले के लगाते रहे मगर समाज के नेताओं ने, लालबत्ती वालों ने, केंद्र व राज्य सरकार ने गुर्जरों के पास जाना उचित नही समझा था। इन लोगों में इतना भी आत्मबल नही था की अपनी एसी रूम में लगी कुर्सी को छोड़कर समाज के सामने आना उचित नही समझा एक बार भी आकर पुछा कि क्या समस्या है। सिर्फ बैठकर बात करते है। बल्कि कुछ मूर्खो ने घटीया बात कही उनके लिये मै इन चार पंक्ति के माध्यम से कहना चाहता हूँ :-
लाल और नीली बत्ती के जिन कारों में हंडे है।
गौर से देखों उनमें बैठे लोग अधिकतर भौंडे है।
तुमने दस दस लाख दीये गुर्जर की विधवाओं को,
मतलब कीमत लौटा दी है वीर माताओं को,
लो मैं बीस लाख देता हू तुम किस्मत के हैठो को,
हिम्मत है तो मंत्री भेजे आंदोलन करने अपने बेटो को।
फिर एक बार समाज को गोलमाल समझौता करने को मजबूर किया गया। सरकार आश्वासन देती रही और कुछ समाज के चाटूकारों को प्रलोभन देकर समय निकालती रही और प्रदेश की दोनों सरकारों ने समाज के लिये न्यायालय मे मजबूती से पैरवी नही की गई। अगर समाज के राजनेता इस प्रमुख मुद्दे पर सक्रियता से अपनी जिम्मेदारी निभाते तो ये समस्या बहुत पहले ही हल हो जाती। जब तक गुर्जर समाज एकजुट होकर मजबूत नही होंगे तब तक सरकार के सामने ऐसे ही गिड़गीडाते रहेंगे। एसबीसी आरक्षण के लिये संपूर्ण प्रक्रिया अपनाने के बाद भी उच्च न्यायलय ने आरक्षण को खारीज कर दिया जबकी इसी न्यायालय ने प्रदेश मे जाट आरक्षण के लिये 1999 में धौलपुर और भरतपुर जिला को छोड़कर बिना किसी सर्वे या बिना किसी आयोग की रिपोर्ट के आरक्षण दिया था और उस जाट आरक्षण पर भी याचिका लगाई गई थी जो 16 साल तक सुनवाई चलती रही और अंत मे 10 अगस्त 2015 को जस्टिस सुनिल अम्बानी ने उनके आरक्षण को सुरक्षित किया क्योंकि उनके नेता लोग एकजुट होकर सरकार की घेराबंदी करते थे। ये सब क्या कुछ गुर्जर समुदाय के दोनों दलों में चिपके महत्वाकांक्षी नेताओं ने कर सकते ??? इतना तो बहुत दूर की बात है इस आरक्षण के पास होने के बाद भी कई विभाग नौकरियों में छोटी-छोटी अड़चन करते थे जैसे सामान्य के बराबर भर्ती शुल्क कर देना, एसबीसी के लिये नियमानुसार पद नही देना, छात्रवृति नही देना, मुकदमें जारी रखना, देवनारायण योजना पर सही कार्य नही करना, घोषणा के अनुरूप बजट नही देना, इन सब अड़चन से छात्र परेशान होते आ रहे थे और सिर्फ संघर्ष समिति ही इनका साथ देती थी फिर भी सत्ता पक्ष के हमारे सरोकार जिनके पास हर विभाग थे मगर कुछ नही करते और सरकार के सामने एक शब्द नही कहते थे जैसे सारी जिम्मेदारी संघर्ष समिति की है लेकिन फिर भी संघर्ष समिति हर सरकार से इन सारी अड़चनो को सुलझाने के लिये दबाब देती थी। लेकिन सरकार के द्वारा सब कुछ लिखित में लेने के बाद भी अगर सरकार ऐसा नही करती तो संघर्ष समिति भी बेबश हो जाती है। मगर राजनेताओं ने समाज के लिये जो किया है उसी का ही तो परिणाम है की आज हम उसी स्थान पर है जहा से हमने शुरूआत की थी और इसके जिम्मेदार हमारे ही समुदाय के दोनों दलों मे चिपके राजनेता है और वो इसलिये है क्युकि जाट समुदाय की तरह भोली गुर्जर कौम ने अभी तक मंच पर ढोंगी, चाटूकार राजनेताओं के कपड़े फाड़ना शुरू नही किया है, मंच से बेदखल करना शुरू नही किया है जब तक समाज इन महत्वाकांक्षी राजनेताओं को सबक नही सिखायेगा और वोट की ताकत पैदा नही करेगा तब तक हर सरकार ऐसे ही भोली-भाली समाज का इस्तेमाल करती रहेगी, तिरस्कार करती रहेगी। समाज ने हर मैदान में हर मौके पर साथ दिया है मगर राजनैतिक मंच हारता आ रहा है। कर्नल बैंसला अपनी छोटी सी संघर्ष समिति के साथ समाज के आशीर्वाद के छाया में अकेले वीर अभिमन्यू की तरह चक्रव्यूह में संघर्ष कर रहे है अब कोई पता नही की वो इस चक्रव्यूह से बाहर निकालने का रास्ता खोज कर समाज को जीत दिला पाएंगी या नही ???
समाज को आवश्यकता है कुछ त्याग करने वाले युवाओं की ऐसे कार्यकर्ताओं की जो समाज के हर गांव-गांव, हर क्षेत्र में जाकर गुर्जर समाज के लोगों को जागृत करे, क्योंकि अभी भी ऐसे जिले है, ऐसे क्षेत्र है, ऐसे गांव है जो समाज की मुख्यधारा से अछूत है वो सहयोग देना चाहते है मगर सरोकारो तक पहुंचने की उनके पास क्षमता नही है और सरोकार उनके पास जाते नही है। लेकिन अब युवा जागृत हो रहा है जल्द ही समाज को एकजुट किया जायेगा और वोट की किमत समाज को समझनी होगी तभी हमारे पास ताकत बनेगी।
अब आगे क्या ???
वर्तमान सरकार ने इस मामले पर फिर राजनिति की है और ना ही गुर्जर समाज के प्रति गंभीर दिखाई दे रही है जब से समाज के अहित में फैंसला आया तब से गुर्जर समाज के कुछ चाटूकारो को रेवडी बांटकर संतुष्ट कर रही है लेकिन वो भूल रही है कि समाज को आरक्षण सरकारी नौकरी मे चाहिये न की राजनिति मे मगर समाज के कुछ सत्ता के लालची लोगों के कारण सरकार गंभीर नही है। इसके लिये समाज को एकजुट होकर विशेषकर युवाओ को कर्नल बैंसला का साथ देना चाहिये और संघर्ष समिति की क्या ताकत है ये दिखानी चाहिये। कर्नल बैंसला को भी संघर्ष समिति मे समीक्षा करनी चाहिये कुछ महत्वाकांक्षी लोगों को बाहर किया जाये और समाज के प्रमुख लोग जिन्हे विधि की जानकारी नही हो, जिन्हे संवैधानिक जानकारी हो और कुछ अन्य प्रमुख लोगों को एकजुट किया जाये। जैसे माध्यमिक शिक्षा बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष प्रो. पी.एस. वर्मा जी, डॉ. आर.के. गुर्जर, प्रो. आर.डी. गुर्जर, डॉ. कुलदीपसिंह गुर्जर, ओपी गुर्जर जोधपुर, मंजू धाभाई, अधिवक्ता श्रीभान गुर्जर, एसडीएम रामसुख गुर्जर जैसे कई प्रमुख जागृत व समाजसेवी जिनके नाम मैं नही जानता हूँ मगर ऐसे अच्छे लोग है उनको एकजुट किया जाये और सुप्रिम कोर्ट मे अनुच्छेद 32 के तहत 50 प्रतिशत के अंदर आरक्षण की बात की जाये और समाज को व संघर्ष समिति को सरकार पर दबाब देना चाहिये जिससे नवीं अनूसूची में डाला जा सके।
मैं कई बाते स्पष्ट नही कर सका हूँ क्योंकि कुछ स्पष्ट नही की जा सकती है मगर समझी जा सकती है। सत्य बेचता हूँ, मैं अपनी जिन्दगी में, कभी भी डरता और घबराता नहीं हूँ। क्योंकि दूध फटने पर डरते और घबराते वो ही व्यक्ति हैं, जिन्हें उस दूध का पनीर बनाना नहीं आता हैं। मौत को अपनी हथेली में लिए फिरता हूँ, अपनी हर साँस में वो दम रखता हूँ,
कोई क्या जलायेगा मेरे अरमानों की चिता, गुर्जर हूँ, चिता लांघने का जिगर रखता हूँ। अपने समाज के लिए कुछ करके जाना हैं, यहीं मैंने ठाना हैं।
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