अन्तर्राष्ट्रीय
गोजरी भाषा को बचाने के लिए एकजुट हो
नन्दलाल
गुर्जर
गोजरी एक अन्तर्राष्ट्रीय भाषा है जो
गुर्जर समुदाय द्वारा बोली जाती है| गुर्जरों ने केवल पुरे उपमहाद्वीप पर शासन ही
नहीं किया बल्कि यहाँ की आधुनिक भाषा और संस्कृति के विकास में गुर्जरों की ही अहम
भूमिका रही है। उत्तरी महाद्वीप की आधुनिक संस्कृति को तय करने में केवल गुर्जरों
की भूमिका रही| राजस्थानी, पंजाबी, हरयाणवी, बृज व गंगा यमुना के दोआब में बोली
जाने वाली गोजरी भाषा का गहरा प्रभाव साफ़ दिखाई पड़ता है व इन भाषाओ के विकास में
गोजरी भाषा का मुख्य योगदान रहा है। गुर्जर काल में गुर्जरों की मात्रभाषा होने के साथ साथ शासन
प्रशासनिक काम काज में भी अहम स्थान रखती थी।
गुर्जर साम्राज्य के पतन के बाद गुर्जरों का बड़ा विस्थापन गुर्जरात्रा (राजस्थान) से उत्तर की तरफ हुआ। जिसमे गुर्जरों ने उत्तर के मैदानों में गोत्रवार गाँव बसाये और मैदानी राज्यों की बोली भाषा और संस्कृति को विकसित करने में अहम योगदान दिया व साथ ही साथ बड़ी गुर्जर जनसँख्या हिमालय की तरफ भी प्रस्थान कर गयी। फ़िलहाल सभी मैदानी राज्यों में गुर्जरों की बोली गोजरी भाषा है। जबकि अन्य समाजो से सदियों तक कटे रहने वाले हिमालयी बक्करवाल गुज्जर समूहों की भाषा सबसे शुद्ध गोजरी भाषा मानी जाती है। जम्मू कश्मीर में अनेक गुर्जर विद्वानों द्वारा गोजरी भाषा में काबीले तारीफ काम हुआ है, परन्तु दुर्भाग्यवश यह जम्मू कश्मीर के गुर्जरों तक ही सिमित रह जाता है।
इसे गुर्जर और गोजरी का दुर्भाग्य कहे या लम्बे संघर्षो और विदेशी शासको के खिलाफ सबसे अधिक लड़ने और बलिदान देने के कारण सामाजिक पिछडेपन के साथ साथ बौधिक रूप से भी कंगाल हो जाना कि इस स्वाभिमानी कौम की सम्रद्ध भाषा जिसने दूसरी मुख्य भाषाओ को विकसित किया, भारत सरकार व् संविधान अभी तक उसको एक भाषा ही नहीं मानता। बात सीधी और साधारण सी है जब कोई कौम सामाजिक रूप से पिछड़ती है, तो उसकी संस्कृति चाहे कितनी मजबूत क्यों न हो उसकी दुर्गति होना स्वाभाविक है और भले ही कुछ गुर्जर उच्च पदों पर फिर से पहुच गए हों कुछ इलाको में गुर्जर बड़े जमीदार हों लेकिन किसी कौम की सम्रद्धि और सम्पन्नता का सबसे बड़ा पैमाना उसकी अपनी सांस्कृतिक पहचान ही होती है, तो इस लिहाज से गुर्जर समुदाय अभी भारत के अति पिछड़े समुदायों में ही आता है। बौधिक रूप से आम गुर्जर की सजगता का स्तर दलित-अति पिछड़े स्तर पर ही है। जिस दिन हमारी अपनी भाषा अपनी सांस्कृतिक विरासत को पुरे समाज के साथ साथ सिनेमा व दुसरे माध्यमो में पहचान मिलनी शुरू हो जाएगी, उस दिन समझा जायेगा की गुर्जर फिर से स्वर्णिम अतीत की तरफ वापसी कर रहा है। अभी तो एक तबके को छोड़कर बाकि गुर्जरों क्या उनके नेताओ तक को पता भी नहीं की गुर्जरों की अपनी भाषा भी है, जिसकी अपनी डिक्शनरी, अपनी ग्रामर है, उसको संविधान से भाषा का दर्जा दिलाना तो दूर की बात है।
आज जरुरत है गोजरी को किताबो से बहार निकालकर उसको उपयोग की भाषा बनाये जाने की। सभी गुर्जर बहुल इलाको में गोजरी को अलग भाषा के तौर पर स्कूलों में पढाये जाने की। तभी गोजरी आम बोलचाल की भाषा बनेगी। जरुरत है आधुनिक म्यूजिक ट्रेंड्स के साथ गोजरी के अच्छे गाने/एल्बम निकालने की, उर्दू लिपि की सीमा तोड़कर गोजरी में हिंदी और अंग्रेजी लिपि में समाचार पत्र-पत्रिकाए निकाले जाने की। पंजाबी कोई बहुत पुरानी भाषा नही है, गुरु ग्रन्थ साहिब को पंजाबी में लिखा गया एवं पंजाबी में समाचार पत्र निकाले गए जिससे पंजाबी उपयोग की व बोलचाल की भाषा बन गयी जबकि खुद पंजाबी में अधिकतर शब्द गोजरी के ही हैं। मैं दावे से कह सकता हूँ अगर गोजरी पढने लिखने की भाषा रही होती तो आज भी अधिकतर गुर्जरों की मात्रभाषा गोजरी ही होती। लेकिन षड्यंत्र के तहत गोजरी को दरकिनार कर के गुर्जरों पर दूसरी भाषाएँ थोप दी गयी व गुर्जर अपनी ही भाषा भूलते गए।
गुर्जर साम्राज्य के पतन के बाद गुर्जरों का बड़ा विस्थापन गुर्जरात्रा (राजस्थान) से उत्तर की तरफ हुआ। जिसमे गुर्जरों ने उत्तर के मैदानों में गोत्रवार गाँव बसाये और मैदानी राज्यों की बोली भाषा और संस्कृति को विकसित करने में अहम योगदान दिया व साथ ही साथ बड़ी गुर्जर जनसँख्या हिमालय की तरफ भी प्रस्थान कर गयी। फ़िलहाल सभी मैदानी राज्यों में गुर्जरों की बोली गोजरी भाषा है। जबकि अन्य समाजो से सदियों तक कटे रहने वाले हिमालयी बक्करवाल गुज्जर समूहों की भाषा सबसे शुद्ध गोजरी भाषा मानी जाती है। जम्मू कश्मीर में अनेक गुर्जर विद्वानों द्वारा गोजरी भाषा में काबीले तारीफ काम हुआ है, परन्तु दुर्भाग्यवश यह जम्मू कश्मीर के गुर्जरों तक ही सिमित रह जाता है।
इसे गुर्जर और गोजरी का दुर्भाग्य कहे या लम्बे संघर्षो और विदेशी शासको के खिलाफ सबसे अधिक लड़ने और बलिदान देने के कारण सामाजिक पिछडेपन के साथ साथ बौधिक रूप से भी कंगाल हो जाना कि इस स्वाभिमानी कौम की सम्रद्ध भाषा जिसने दूसरी मुख्य भाषाओ को विकसित किया, भारत सरकार व् संविधान अभी तक उसको एक भाषा ही नहीं मानता। बात सीधी और साधारण सी है जब कोई कौम सामाजिक रूप से पिछड़ती है, तो उसकी संस्कृति चाहे कितनी मजबूत क्यों न हो उसकी दुर्गति होना स्वाभाविक है और भले ही कुछ गुर्जर उच्च पदों पर फिर से पहुच गए हों कुछ इलाको में गुर्जर बड़े जमीदार हों लेकिन किसी कौम की सम्रद्धि और सम्पन्नता का सबसे बड़ा पैमाना उसकी अपनी सांस्कृतिक पहचान ही होती है, तो इस लिहाज से गुर्जर समुदाय अभी भारत के अति पिछड़े समुदायों में ही आता है। बौधिक रूप से आम गुर्जर की सजगता का स्तर दलित-अति पिछड़े स्तर पर ही है। जिस दिन हमारी अपनी भाषा अपनी सांस्कृतिक विरासत को पुरे समाज के साथ साथ सिनेमा व दुसरे माध्यमो में पहचान मिलनी शुरू हो जाएगी, उस दिन समझा जायेगा की गुर्जर फिर से स्वर्णिम अतीत की तरफ वापसी कर रहा है। अभी तो एक तबके को छोड़कर बाकि गुर्जरों क्या उनके नेताओ तक को पता भी नहीं की गुर्जरों की अपनी भाषा भी है, जिसकी अपनी डिक्शनरी, अपनी ग्रामर है, उसको संविधान से भाषा का दर्जा दिलाना तो दूर की बात है।
आज जरुरत है गोजरी को किताबो से बहार निकालकर उसको उपयोग की भाषा बनाये जाने की। सभी गुर्जर बहुल इलाको में गोजरी को अलग भाषा के तौर पर स्कूलों में पढाये जाने की। तभी गोजरी आम बोलचाल की भाषा बनेगी। जरुरत है आधुनिक म्यूजिक ट्रेंड्स के साथ गोजरी के अच्छे गाने/एल्बम निकालने की, उर्दू लिपि की सीमा तोड़कर गोजरी में हिंदी और अंग्रेजी लिपि में समाचार पत्र-पत्रिकाए निकाले जाने की। पंजाबी कोई बहुत पुरानी भाषा नही है, गुरु ग्रन्थ साहिब को पंजाबी में लिखा गया एवं पंजाबी में समाचार पत्र निकाले गए जिससे पंजाबी उपयोग की व बोलचाल की भाषा बन गयी जबकि खुद पंजाबी में अधिकतर शब्द गोजरी के ही हैं। मैं दावे से कह सकता हूँ अगर गोजरी पढने लिखने की भाषा रही होती तो आज भी अधिकतर गुर्जरों की मात्रभाषा गोजरी ही होती। लेकिन षड्यंत्र के तहत गोजरी को दरकिनार कर के गुर्जरों पर दूसरी भाषाएँ थोप दी गयी व गुर्जर अपनी ही भाषा भूलते गए।
नन्दलाल गुर्जर
ग्राम- थलखुर्द, वाया- काछोला,
जिला- भीलवाडा
(राजस्थान) 311605
मो. 9166904121
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