मंगलवार, 5 जुलाई 2016

== सोमनाथ युद्ध के इतिहास पर कविता ==ईसम सिंह चौहान

एक बार इस कविता को जरूर पढे, यकीनन आप शेयर किये बगैर नही रूकोगे। यह कविता प्रसिद्ध इतिहासकार 'ईसम सिंह चौहान' ने अपनी पुस्तक " परछाईयां (काव्य संग्रह) मे लिखी है।
जैसे ईसम सिंह जी ने सोमनाथ के पूरे युद्ध को इस कविता मे पिरोया है वो वाकई तारीफ के काबिल है।
==== सोमनाथ युद्ध के इतिहास पर कविता ====
सोमनाथ मंदिर को करने नष्ट,प्रभास पहन को करने नष्ट ।
चलदिया गजनी से महमूद, संग ले गोलो और बारूद ॥
विश्व विजय था उसका लक्ष, लट खसोट मे वह था दक्ष ।
राह मे आई अनेको बाधा, सैन्य बल भी खप गया आधा ॥
थे मनसूबे उसके मजबूत, रोक ना सके उसको कोई पूत ।
राह मे पडता था सुल्तान, जा पहुचाँ वहां पर सुल्तान ॥
मुल्तान का शासक था अजयपाल, बन गया वह महमूद की ढाल ।
हो गया अजयपाल बैईमान, नाम डुबा बैठा चौहान ॥
सुन अजयपाल की करतूत, आपा खो बैठा गुर्जर का पूत ।
था वो घोघा बापा रणवीर, बूढा शेर गजब का वीर ॥
चौहान खानदान की आन, सम्राट गुर्जरेश्वर की शान ।
पर आगे दाग ना लगने दूंगा, सोमनाथ को ना जलने दूंगा ॥
मिट गया वीर देश धर्म पर, कर आधात महमूद मरम पर ।
भूला ना उनको हम पाएंगे, तुझे घोघा बापा हम गायेंगे ॥
दी खूब मार था लिया घेर, महमूद जब पहुंचा अजमेर ।
हिन्दु धर्म का है भाग्य मन्द, यहा हर युग मे जन्मे जयचंद ॥
देकर कपट व देकर धोखा, महमूद भी पा गया था मौका ।
करके सुलह शान्ति का नाटक, जा पहुचां पुष्कर के फाटक ॥
स्नान ध्यान मे था गुर्जर चौहान, पीठ पे वार करगया सुल्तान ।
था लडता जाता बढता जाता, उसका सैन्य बल था घटता जाता ॥
उसको ना रोक सकी कोई बात, उसका लक्ष्य ही था गुजरात ।
महमूद की प्रतिक्षा मे अधीर, था गुर्जर भू का गुर्जर वीर ॥
बडा ही पराक्रमी और बलवीर ।जिसकी थी रक्त प्याशी शमसीर ॥
महमूद की खत्म करने नौटंकी, गुर्जरेश्वर वीर भीमदेव सोलंकी ।
लेकर अपनी सैना एक लाख, महमूद के सपने करने खाक ॥
जा पहुचां महालय सोमनाथ, मानो वहां खुद पशुपति नाथ ।
कर रहे हो सैन्य संचालन, करके धर्म और मर्यादा पालन ॥
था तत्पर गुर्जर कुल गौरव, रण क्षेत्र मे मचाने रौरव ।
दोनो पक्ष के सैनिक बढ गए, अश्वरोही अश्वो पर चढ गए ॥
थी चमकी उंटो पर तलवार। थे हाथियों पर हाथो असवार ॥
बडी भयंकर हुई लडाई, महमूद ने उसदिन पार ना पाई ।
खाकर अच्छा खासा जन नुकसान, पीछे हट गया था सुल्तान ॥
दूसरे दिन युद्ध हुआ घनघोर, चारो और मच गया शोर ।
या मेरे मौला हमे बचाओ, गढ गजनी की राह दिखाओ ॥
दे हर-हर महादेव का नारा, अरिदल को था खूब ही मारा ।
गुर्जर, काछी और भील, शत्रूदल सिर मे ठोक रहे थे कील ॥
करके शत्रु मार्ग अवरूद्ध, भीमदेव गुर्जरेश कर रहा था युद्ध ।
उसकी खडग थी जश्न मनाती, बार बार वह खून मे नहाती ॥
हाय देश का दुर्भाग्य निरा, गुर्जरेश अरिदल से घिरा ।
होकर घायल था वीर गिरा, फिर भी वह वापस ना फिरा ॥
जब सोमनाथ का हुआ पतन, था संकट मे आ गया पतन ।
था गजनवी महमूद वतन, रो रही अपना मांए और बहन ॥
देश भी डूबा धर्म भी डूबा, इन सबको एक संग ले डूबा ।
घर का भेदी देश का दूश्मन, जयचन्द कहो या कहो विभीषण ॥
शक्ति मे कम ना भक्ति मे कम, जीत की खुशी ना हार का गम ।
खूब लडे वतन दीवाने, घर के बन गये थे बेगाने ॥
लूट खसोट कर देव का धाम, लूट खसोट कर शहर व ग्राम ।
वापस लौटा जब महमूद, करदिया उसका राह अवरूद्ध ॥
भीम भयंकर आंधी तूफान, सुल्तान भूल गया औसान ।
दब गए उसके सारे हाथी, बिछडे उसके सारे साथी ॥
जो रखते थे जीने की चाह, मिलता नही था उनको राह ।
हो गए वह जीवन से निराश, उनको तडफा रही थी प्यास ॥
थे लुटे लुटेरे दस्यु दल से, रख दी जीत हार मे बदल के ।
क्या यह प्रभू लीला की लाली थी, लौटते महमूद की मुट्ठिया खाली थी ॥
जिससे उसने जान थी हारी, वह अबला एक हिन्दु नारी ।
उससे पा प्राणो की भीख, महमूद पा गया था सीख ॥
जब वह वापस गजनी लौटा, पास ना उसके पैसा खौटा ।
हुआ क्षीण था उसका बल, हो गया खत्म उसका दल ।।
स्वास्थ्य लाभ भीम गुर्जरेश ने पाया, लौट के वह प्रभास पहन आया ।
जिधर जिधर गया भीमदेव महान, उसने पाया समुचित सम्मान ॥
• संदर्भ :
पुस्तक - परछाईयां (काव्य संग्रह)
लेखक - ईसम सिंह चौहान

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