एक बार इस कविता को जरूर पढे, यकीनन आप शेयर किये बगैर नही रूकोगे। यह कविता प्रसिद्ध इतिहासकार 'ईसम सिंह चौहान' ने अपनी पुस्तक " परछाईयां (काव्य संग्रह) मे लिखी है।
जैसे ईसम सिंह जी ने सोमनाथ के पूरे युद्ध को इस कविता मे पिरोया है वो वाकई तारीफ के काबिल है।
जैसे ईसम सिंह जी ने सोमनाथ के पूरे युद्ध को इस कविता मे पिरोया है वो वाकई तारीफ के काबिल है।
==== सोमनाथ युद्ध के इतिहास पर कविता ====
सोमनाथ मंदिर को करने नष्ट,प्रभास पहन को करने नष्ट ।
चलदिया गजनी से महमूद, संग ले गोलो और बारूद ॥
विश्व विजय था उसका लक्ष, लट खसोट मे वह था दक्ष ।
राह मे आई अनेको बाधा, सैन्य बल भी खप गया आधा ॥
थे मनसूबे उसके मजबूत, रोक ना सके उसको कोई पूत ।
राह मे पडता था सुल्तान, जा पहुचाँ वहां पर सुल्तान ॥
मुल्तान का शासक था अजयपाल, बन गया वह महमूद की ढाल ।
हो गया अजयपाल बैईमान, नाम डुबा बैठा चौहान ॥
चलदिया गजनी से महमूद, संग ले गोलो और बारूद ॥
विश्व विजय था उसका लक्ष, लट खसोट मे वह था दक्ष ।
राह मे आई अनेको बाधा, सैन्य बल भी खप गया आधा ॥
थे मनसूबे उसके मजबूत, रोक ना सके उसको कोई पूत ।
राह मे पडता था सुल्तान, जा पहुचाँ वहां पर सुल्तान ॥
मुल्तान का शासक था अजयपाल, बन गया वह महमूद की ढाल ।
हो गया अजयपाल बैईमान, नाम डुबा बैठा चौहान ॥
सुन अजयपाल की करतूत, आपा खो बैठा गुर्जर का पूत ।
था वो घोघा बापा रणवीर, बूढा शेर गजब का वीर ॥
चौहान खानदान की आन, सम्राट गुर्जरेश्वर की शान ।
पर आगे दाग ना लगने दूंगा, सोमनाथ को ना जलने दूंगा ॥
मिट गया वीर देश धर्म पर, कर आधात महमूद मरम पर ।
भूला ना उनको हम पाएंगे, तुझे घोघा बापा हम गायेंगे ॥
दी खूब मार था लिया घेर, महमूद जब पहुंचा अजमेर ।
हिन्दु धर्म का है भाग्य मन्द, यहा हर युग मे जन्मे जयचंद ॥
था वो घोघा बापा रणवीर, बूढा शेर गजब का वीर ॥
चौहान खानदान की आन, सम्राट गुर्जरेश्वर की शान ।
पर आगे दाग ना लगने दूंगा, सोमनाथ को ना जलने दूंगा ॥
मिट गया वीर देश धर्म पर, कर आधात महमूद मरम पर ।
भूला ना उनको हम पाएंगे, तुझे घोघा बापा हम गायेंगे ॥
दी खूब मार था लिया घेर, महमूद जब पहुंचा अजमेर ।
हिन्दु धर्म का है भाग्य मन्द, यहा हर युग मे जन्मे जयचंद ॥
देकर कपट व देकर धोखा, महमूद भी पा गया था मौका ।
करके सुलह शान्ति का नाटक, जा पहुचां पुष्कर के फाटक ॥
स्नान ध्यान मे था गुर्जर चौहान, पीठ पे वार करगया सुल्तान ।
था लडता जाता बढता जाता, उसका सैन्य बल था घटता जाता ॥
उसको ना रोक सकी कोई बात, उसका लक्ष्य ही था गुजरात ।
महमूद की प्रतिक्षा मे अधीर, था गुर्जर भू का गुर्जर वीर ॥
बडा ही पराक्रमी और बलवीर ।जिसकी थी रक्त प्याशी शमसीर ॥
करके सुलह शान्ति का नाटक, जा पहुचां पुष्कर के फाटक ॥
स्नान ध्यान मे था गुर्जर चौहान, पीठ पे वार करगया सुल्तान ।
था लडता जाता बढता जाता, उसका सैन्य बल था घटता जाता ॥
उसको ना रोक सकी कोई बात, उसका लक्ष्य ही था गुजरात ।
महमूद की प्रतिक्षा मे अधीर, था गुर्जर भू का गुर्जर वीर ॥
बडा ही पराक्रमी और बलवीर ।जिसकी थी रक्त प्याशी शमसीर ॥
महमूद की खत्म करने नौटंकी, गुर्जरेश्वर वीर भीमदेव सोलंकी ।
लेकर अपनी सैना एक लाख, महमूद के सपने करने खाक ॥
जा पहुचां महालय सोमनाथ, मानो वहां खुद पशुपति नाथ ।
कर रहे हो सैन्य संचालन, करके धर्म और मर्यादा पालन ॥
था तत्पर गुर्जर कुल गौरव, रण क्षेत्र मे मचाने रौरव ।
दोनो पक्ष के सैनिक बढ गए, अश्वरोही अश्वो पर चढ गए ॥
थी चमकी उंटो पर तलवार। थे हाथियों पर हाथो असवार ॥
बडी भयंकर हुई लडाई, महमूद ने उसदिन पार ना पाई ।
लेकर अपनी सैना एक लाख, महमूद के सपने करने खाक ॥
जा पहुचां महालय सोमनाथ, मानो वहां खुद पशुपति नाथ ।
कर रहे हो सैन्य संचालन, करके धर्म और मर्यादा पालन ॥
था तत्पर गुर्जर कुल गौरव, रण क्षेत्र मे मचाने रौरव ।
दोनो पक्ष के सैनिक बढ गए, अश्वरोही अश्वो पर चढ गए ॥
थी चमकी उंटो पर तलवार। थे हाथियों पर हाथो असवार ॥
बडी भयंकर हुई लडाई, महमूद ने उसदिन पार ना पाई ।
खाकर अच्छा खासा जन नुकसान, पीछे हट गया था सुल्तान ॥
दूसरे दिन युद्ध हुआ घनघोर, चारो और मच गया शोर ।
या मेरे मौला हमे बचाओ, गढ गजनी की राह दिखाओ ॥
दे हर-हर महादेव का नारा, अरिदल को था खूब ही मारा ।
गुर्जर, काछी और भील, शत्रूदल सिर मे ठोक रहे थे कील ॥
करके शत्रु मार्ग अवरूद्ध, भीमदेव गुर्जरेश कर रहा था युद्ध ।
उसकी खडग थी जश्न मनाती, बार बार वह खून मे नहाती ॥
दूसरे दिन युद्ध हुआ घनघोर, चारो और मच गया शोर ।
या मेरे मौला हमे बचाओ, गढ गजनी की राह दिखाओ ॥
दे हर-हर महादेव का नारा, अरिदल को था खूब ही मारा ।
गुर्जर, काछी और भील, शत्रूदल सिर मे ठोक रहे थे कील ॥
करके शत्रु मार्ग अवरूद्ध, भीमदेव गुर्जरेश कर रहा था युद्ध ।
उसकी खडग थी जश्न मनाती, बार बार वह खून मे नहाती ॥
हाय देश का दुर्भाग्य निरा, गुर्जरेश अरिदल से घिरा ।
होकर घायल था वीर गिरा, फिर भी वह वापस ना फिरा ॥
जब सोमनाथ का हुआ पतन, था संकट मे आ गया पतन ।
था गजनवी महमूद वतन, रो रही अपना मांए और बहन ॥
देश भी डूबा धर्म भी डूबा, इन सबको एक संग ले डूबा ।
घर का भेदी देश का दूश्मन, जयचन्द कहो या कहो विभीषण ॥
शक्ति मे कम ना भक्ति मे कम, जीत की खुशी ना हार का गम ।
खूब लडे वतन दीवाने, घर के बन गये थे बेगाने ॥
लूट खसोट कर देव का धाम, लूट खसोट कर शहर व ग्राम ।
वापस लौटा जब महमूद, करदिया उसका राह अवरूद्ध ॥
भीम भयंकर आंधी तूफान, सुल्तान भूल गया औसान ।
दब गए उसके सारे हाथी, बिछडे उसके सारे साथी ॥
जो रखते थे जीने की चाह, मिलता नही था उनको राह ।
हो गए वह जीवन से निराश, उनको तडफा रही थी प्यास ॥
थे लुटे लुटेरे दस्यु दल से, रख दी जीत हार मे बदल के ।
क्या यह प्रभू लीला की लाली थी, लौटते महमूद की मुट्ठिया खाली थी ॥
होकर घायल था वीर गिरा, फिर भी वह वापस ना फिरा ॥
जब सोमनाथ का हुआ पतन, था संकट मे आ गया पतन ।
था गजनवी महमूद वतन, रो रही अपना मांए और बहन ॥
देश भी डूबा धर्म भी डूबा, इन सबको एक संग ले डूबा ।
घर का भेदी देश का दूश्मन, जयचन्द कहो या कहो विभीषण ॥
शक्ति मे कम ना भक्ति मे कम, जीत की खुशी ना हार का गम ।
खूब लडे वतन दीवाने, घर के बन गये थे बेगाने ॥
लूट खसोट कर देव का धाम, लूट खसोट कर शहर व ग्राम ।
वापस लौटा जब महमूद, करदिया उसका राह अवरूद्ध ॥
भीम भयंकर आंधी तूफान, सुल्तान भूल गया औसान ।
दब गए उसके सारे हाथी, बिछडे उसके सारे साथी ॥
जो रखते थे जीने की चाह, मिलता नही था उनको राह ।
हो गए वह जीवन से निराश, उनको तडफा रही थी प्यास ॥
थे लुटे लुटेरे दस्यु दल से, रख दी जीत हार मे बदल के ।
क्या यह प्रभू लीला की लाली थी, लौटते महमूद की मुट्ठिया खाली थी ॥
जिससे उसने जान थी हारी, वह अबला एक हिन्दु नारी ।
उससे पा प्राणो की भीख, महमूद पा गया था सीख ॥
जब वह वापस गजनी लौटा, पास ना उसके पैसा खौटा ।
हुआ क्षीण था उसका बल, हो गया खत्म उसका दल ।।
स्वास्थ्य लाभ भीम गुर्जरेश ने पाया, लौट के वह प्रभास पहन आया ।
जिधर जिधर गया भीमदेव महान, उसने पाया समुचित सम्मान ॥
उससे पा प्राणो की भीख, महमूद पा गया था सीख ॥
जब वह वापस गजनी लौटा, पास ना उसके पैसा खौटा ।
हुआ क्षीण था उसका बल, हो गया खत्म उसका दल ।।
स्वास्थ्य लाभ भीम गुर्जरेश ने पाया, लौट के वह प्रभास पहन आया ।
जिधर जिधर गया भीमदेव महान, उसने पाया समुचित सम्मान ॥
• संदर्भ :
पुस्तक - परछाईयां (काव्य संग्रह)
लेखक - ईसम सिंह चौहान
पुस्तक - परछाईयां (काव्य संग्रह)
लेखक - ईसम सिंह चौहान
सुन्दर।
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