बिजौलिया के गाँधी - विजय सिंह पथिक (Vijay Singh Pathik)
डा. सुशील भाटी
Vijay Singh Pathik |
विजय सिंह पथिक का जन्म 27 फरवरी, 1873 की बुलन्दशहर जिले के ग्राम गुठावली कलां में हुआ था। उनके दादा इन्द्र सिंह बुलन्दशहर स्थित मालागढ़ रियासत के दीवान (प्रधानमंत्री) थे। सन् 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में पथिक के दादा अंग्रेजों से लड़ते हुये वीरगति को प्राप्त हुये। उनके पिता को भी क्रान्ति में भाग लेने के आरोप में सरकार ने गिरफ्तार किया था। पथिक जी पर अपने परिवार की क्रान्तिकारी और देशभक्ति से परिपूर्ण पृष्ठभूमि का बहुत गहरा असर पड़ा।
युवावस्था में पथिक जी का सम्पर्क रास बिहारी और सचिन सान्याल आदि क्रान्तिकारियों से हुआ। 1912 में ब्रिटिश सरकार ने भारत की राजधानी कलकत्ता से हटाकर दिल्ली लाने का निर्णय किया। इस अवसर पर भारत के गवर्नर जनरल लार्ड हाडिंग ने दिल्ली प्रवेश करने के लिए एक शानदार जुलूस का आयोजन किया। गवर्नर जनरल लार्ड हाडिंग ने दिल्ली प्रवेश के समय विजय सिंह पथिक ने अन्य क्रान्तिकारियों के साथ जुलूस पर बम फेंक कर लार्ड हार्डिग को मारने की कोशिश की। रास बिहारी बोस, जोरावर सिंह, प्रताप सिंह, पथिक जी व अन्य सभी सम्बन्धित क्रान्तिकारी अंग्रेजो के हाथ नहीं आये और वे फरार हो गए।
सन् 1915 मंें रास बिहारी बोस के नेतृत्व में लाहौर में क्रान्तिकारियों ने निर्णय लिया कि 21 फरवरी को देश के विभिन्न स्थानों 1857 की क्रान्ति की तर्ज पर सशस्त्र विद्रोह किया जाए। भारतीय इतिहास में इसे गदर आन्दोलन कहते है। योजना यह थी कि एक तरफ तो भारतीय ब्रिटिश सेना को विद्रोह के लिए उकसाय जाये दूसरी तरफ देशी राजाओं और उनकी सेनाओं का विद्रोह में सहयोग प्राप्त किया जाए। राजस्थान में इस क्रान्ति को संचालित करने का दायित्व विजय सिंह पथिक को सौंपा गया। उस समय पथिक जी फिरोजपुर षडयंत्र केस में फरार थे और खरवा (राजस्थान) में गोपाल सिंह के पास रह रहे थे। दोनो ने मिलकर दो हजार युवकों का दल तैयार किया और तीस हजार से अधिक बन्दूकें एकत्र की। दुर्भाग्य से अंग्रेजी सरकार पर क्रान्तिकारियों की देशव्यापी योजना का भेद खुल गया। देश भर में क्रान्तिकारयों को समय से पूर्व पकड़ लिया गया। पथिक जी और गोपाल सिंह ने गोला बारूद्व भूमिगत कर दिया और सैनिकों को बिखेर दिया गया। कुछ ही दिनों बाद अजमेर के अंग्रेज कमिश्नर ने पांच सौ सैनिकों के साथ पथिक जी और गोपाल सिंह को खरवा के जंगलों से गिरफ्तार कर लिया और टाडगढ़ के किले में नजरबंद कर दिया गया। उन्हीं दिनों लाहौर षडयंत्र केस में पथिक जी का नाम उभरा और उन्हें लाहौर ले जाने के आदेश हुए। किसी तरह यह खबर पथिक जी को मिल गई और वो टाडगढ़ के किले से फरार हो गए।
गिरफ्तारी से बचने के लिए पथिक जी ने अपना वेश राजस्थानी राजपूतों जैसा बना लिया और चित्तौडगढ़ क्षेत्र में रहने लगे। बिजौलिया से आये एक साधु सीताराम दास पथिक जी से बहुत प्रभावित हुए और उन्होनें पथिक जी को बिजौलिया आन्दोलन का नेतृत्व सम्भालने को आमत्रिंत किया। बिजौलिया उदयपुर रियासत में एक ठिकाना था। जहाॅ किसानों से भारी मात्रा में लाग बाग वसूली जाती थी और किसानों की दशा अति शोचनीय थी। पथिक जी 1916 में बिजौलिया पहुच गए और उन्हौनें आन्दोलन की कमान अपने हाथों में सम्भाल ली। माणिक्य लाल वर्मा ने पथिक जी से प्रभावित होकर बिजौलिया ठिकाने की सेवा से त्यागपत्र दे दिया और आन्दोलन में कूद पडें। 1916 में विजय सिंह पथिक ने बिजौलिया किसान पंचायत नाम से एक किसान संगठन का गठन किया। प्रत्येक गाॅव में किसान पंचायत की शाखाएॅ खोली गई। किसानों की मुख्य मांगे भूमि कर, अधिभारों एवं बेगार से सम्बन्धित थी। किसानों से 84 प्रकार के कर वसूले जाते थे। इसके अतिरिक्त युद्व कोष कर भी एक अहम मुददा था, एक अन्य मुददा साहूकारों से सम्बन्धित था जो कि जमीदारों के सहयोग और संरक्षण से किसानों को निरन्तर लूट रहे थे। पंचायत ने भूमि कर न देने का निर्णय लिया गया। किसान वास्तव में 1917 की रूसी क्रान्ति की सफलता से उत्साहित थे, पथिक जी ने उनके बीच रूस में श्रमिकों और किसानों का शासन स्थापित होने के समाचार को खूब प्रचारित किया था। विजय सिंह पथिक ने कानपुर से प्रकाशित गणेश शंकर विद्यार्थी द्वारा सम्पादित पत्र प्रताप के माध्यम से बिजौलिया के किसान आन्दोलन को समूचे देश में चर्चा का विषय बना दिया।
सन् 1919 में अमृतसर कांग्रेस में पथिक जी के प्रयत्न से लोकमान्य तिलक ने बिजौलिया सम्बन्धी प्रस्ताव रखा। पथिक जी ने बम्बई जाकर किसानों की करूण गाथा गांधी जी को सुनाई। गांधी जी ने वचन दिया कि यदि मेवाड़ सरकार ने न्याय नहीं किया तो वह स्वयं बिजौलिया सत्याग्रह का संचालन करेगें। महात्मा गांधी ने किसानों की शिकायत दूर करने के लिए एक पत्र महाराणा को लिखा, पर कोई हल नहीं निकला। पथिक जी बम्बई यात्रा के समय, गांधी जी की पहल पर, यह निश्चय किया गया कि वर्धा से ‘‘राजस्थान केसरी’’ नामक पत्र निकाला जाए। पत्र सारे देश में लोकप्रिय हो गया, परन्तु पथिक जी का जमनालाल बजाज की विचारधारा से मेल नहीं खाया और वे वर्धा छोड़कर अजमेर चले गए।
सन् 1920 में पथिक जी के प्रयत्नों से अजमेर में ‘‘राजस्थान सेवा संघ’’ की स्थापना हुई। शीघ्र ही इस संस्था की शाखाएॅ पूरे प्रदेश में खुल गई। इस संस्था ने राजस्थान में कई जन आन्दोलनों का संचालन किया। अजमेर से ही पथिक जी ने एक नया पत्र ‘‘नवीन राजस्थान’’ प्रकाशित किया। सन् 1920 में पथिक जी अपने साथियों के साथ नागपुर अधिवेशन में शामिल हुए और बिजौलिया के किसानों की दुर्दशा और देशी राजाओं की निरंकुशता को दर्शाती हुई एक प्रदर्शनी का आयोजन किया। गांधी जी पथिक जी के बिजौलिया आन्दोलन से बहुत प्रभावित हुए, परन्तु गांधी जी का रूख देशी राजाओं और सामन्तों के प्रति नरम ही बना रहा। कांग्रेस और गांधी जी यह समझने में असफल रहें कि सामन्तवाद साम्राज्यवाद का ही एक स्तम्भ है और ब्रिटिश साम्राज्यवाद के विनाश के लिए साम्राज्यवाद विरोधी संघर्ष के साथ-साथ सामन्तवाद विरोधी संघर्ष आवश्यक है। गांधी जी ने अहमदाबाद अधिवेशन में बिजौलिया के किसानों को हिजरत (क्षेत्र छोड़ देने) की सलाह दी। पथिक जी ने इसे अपनाने से यह कहकर इनकार कर दिया कि यह तो केवल हिजड़ो के लिए ही उचित है, पुरूषों के लिए नहीं।
सन् 1921 के आते-आते पथिक जी ने राजस्थान सेवा संघ के माध्यम से बेगू, पारसोली, भिन्डर, बासी और उदयपुर में शक्तिशाली आन्दोलन किए। बिजौलिया आन्दोलन अन्य क्षेत्र के किसानों के लिए प्रेरणा स्रोत बन गया था। ऐसा लगने लगा मानो राजस्थान में किसान आन्दोलन की लहर चल पडी है। इससे ब्रिटिश सरकार डर गई। इस आन्दोलन में उसे बोल्शेविक आन्दोलन की प्रतिछाया दिखाई देने लगी। दूसरी ओर कांग्रेस के असहयोग आन्दोलन शुरू करने से भी सरकार को स्थिति और बिगड़ने की भी आशंका होने लगी। अंतत सरकार ने राजस्थान के ए0 जी0 जी0 हालैण्ड को बिजौलिया किसान पंचायत बोर्ड और राजस्थान सेवा संघ से बातचीत करने के लिए नियुक्त किया। शीघ्र ही दोनो पक्षों में समझौता हो गया। किसानों की अनेक मांगे मान ली गई। चैरासी में से पैंतीस लागतें माफ कर दी गई। जुल्मी कारिन्दे बर्खास्त कर दिए गए। किसानों की अपूर्व विजय हुई।
इस बीच में बेगू में आन्दोलन तीव्र हो गया। मेवाड सरकार ने पथिक जी को गिरफ्तार कर लिया और उन्हें पांच वर्ष की सजा सुना दी गई। लम्बे अरसे की केद के बाद पथिक जी अप्रैल 1927 को रिहा किए गए।
पथिक जी जीवनपर्यन्त निःस्वार्थ भाव से देश सेवार में जुटे रहें। भारत माता का यह महान सपूत 28 मई, 1954 में चिर निद्रा में सो गया। पथिक जी की देशभक्ति निःस्वार्थ थी और जब वह मरे उनके पास सम्पत्ति के नाम पर कुछ नहीं था, जबकि तत्कालीन सरकार के कई मंत्री उनके राजनैतिक शिष्य थे। राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री श्री शिवचरण माधुर ने पथिक जी का वर्णन राजस्थान की जागृति के अग्रदूत महान क्रान्तिकारी के रूप में किया। पथिक जी के नेतृत्व में संचालित हुए बिजौलिया आन्दोलन को इतिहासकार देश का पहला किसान सत्याग्रह मानते है।
( Dr. Sushil Bhati )
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