हिंडन का युद्ध ( The war of Hindan )
डा. सुशील भाटी
1857 के स्वतन्त्रता संग्राम में मेरठ और दिल्ली की सीमा पर हिंडन नदी के किनारे 30, 31 मई 1857 कोराष्ट्रवादी सेना और अंग्रेजों के बीच एक ऐतिहासिक युद्ध हुआ था जिसमें भारतीयों ने मुगल शहजादामिर्जा अबू बक्र,[1] दादरी के राजा उमराव सिंह[2] और मालागढ़ के नबाब वलीदाद खाँन[3] के नेतृत्व मेंअंग्रेजी सेना के दांत खट्टे कर दिये थे।
जैसा कि विदित है कि 10 मई 1857 को मेरठ में देशी सिपाहियों ने विद्रोह कर दिया और रात में ही वोदिल्ली कूच कर गए थे। 11 मई को इन्होंने अन्तिम मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर को हिन्दुस्तान काबादशाह घोषित कर दिया[4] और अंग्रेजों को दिल्ली के बाहर खदेड़ दिया। अंग्रेजों ने दिल्ली के बाहर रिजक्षेत्र में शरण ले ली।
तत्कालीन परिस्थितियों में दिल्ली की क्रान्तिकारी सरकार के लिए मेरठ क्षेत्र बहुत महत्वपूर्ण था। नकेवल मेरठ से सैनिक विद्रोह की शुरूआत हुई थी वरन पूरे मेरठ क्षेत्र में, सहारनपुर से लेकर बुलन्दशहरतक का हिन्दू-मुस्लिम, किसान-मजदूर सभी आमजन, इस अंग्रेज विरोधी संघर्ष में कूद पड़े थे। ब्रिटिशविरोधी संघर्ष ने यहाँ जन आन्दोलन और जनक्रान्ति का रूप धारण कर लिया था। मेरठ क्षेत्र दिल्ली केक्रान्तिकारियों को जन, धन एवं अनाज (रसद) की भारी मदद पहुँच रहा था। स्थिति को देखते हुए मुगलबादशाह ने मालागढ़ के नवाब वलीदाद खान को इस क्षेत्र का नायब सूबेदार बना दिया,[5] उसने इस क्षेत्रकी क्रान्तिकारी गतिविधियों को गतिविधियों को गति प्रदान करने के लिये दादरी में क्रान्तिकारियों केनेता राजा उमराव सिंह से सम्पर्क साधा[6], जिसने दिल्ली की क्रान्तिकारी सरकार का पूरा साथ देने कावादा किया।
मेरठ में अंग्रेजों के बीच अफवाह थी कि विद्रोही सैनिक, बड़ी भारी संख्या में, मेरठ पर हमलाकर सकते हैं।[7] अंग्रेज मेरठ को बचाने के लिए दृढ़ प्रतिज्ञ थे क्योंकि मेरठ पूरे डिवीजन का केन्द्र था।मेरठ को आधार बनाकर ही अंग्रेज इस क्षेत्र में क्रान्ति का दमन कर सकते थे। अंग्रेज इस सम्भावितहमले से रक्षा की तैयारी में जुए गए। मेरठ होकर वापिस गए दो व्यक्तियों ने बहादुर शाह जफर कोबताया कि 1000 यूरोपिय सैनिकों ने सूरज कुण्ड पर एक किले का निर्माण कर लिया है।[8]
इस प्रकार दोनों और युद्ध की तैयारियां जोरो पर थी। तकरीबन 20 मई 1857 को भारतीयों नेहिंडन नदी का पुल तोड़ दिया जिससे दिल्ली के रिज क्षेत्र में शरण लिए अंग्रेजों का सम्पर्क मेरठ औरउत्तरी जिलो से टूट गया।[9]
इस बीच युद्ध का अवसर आ गया जब दिल्ली को पुनः जीतने के लिए अंगे्रजों की एक विशालसेना प्रधान सेनापति बर्नाड़ के नेतृत्व में अम्बाला छावनी से चल पड़ी। सेनापति बर्नाड ने दिल्ली पर धावाबोलने से पहले मेरठ की अंग्रेज सेना को साथ ले लेेने का निर्णय किया। अतः 30 मई 1857 को जनरलआर्कलेड विल्सन की अध्यक्षता में मेरठ की अंगे्रज सेना बर्नाड का साथ देने के लिए गाजियाबाद केनिकट हिंडन नदी के तट पर पहुँच गई। किन्तु इन दोनों सेनाओं को मिलने से रोकने के लिए क्रान्तिकारीसैनिकों और आम जनता ने भी हिन्डन नदी के दूसरी तरफ मोर्चा लगा रखा था।[10]
जनरल विल्सन की सेना में 60वीं शाही राइफल्स की 4 कम्पनियां, कार्बाइनरों की 2 स्क्वाड्रन,हल्की फील्ड बैट्री, ट्रुप हार्स आर्टिलरी, 1 कम्पनी हिन्दुस्तानी सैपर्स एवं माईनर्स, 100 तोपची एवंहथगोला विंग के सिपाही थे।[1]1 अंग्रेजी सेना अपनी सैनिक व्यवस्था बनाने का प्रयास कर रही थी किक्रान्तिकारी सेना ने उन पर तोपों से आक्रमण कर दिया।[12] भारतीयों की राष्ट्रवादी सेना की कमानमुगल शहजादे मिर्जा अबू बक्र दादरी के राजा उमराव सिंह एवं नवाब वलीदाद खान के हाथ में थी।भारतीयों की सेना में बहुत से घुड़सवार, पैदल और घुड़सवार तोपची थे।[13] भारतीयों ने तोपे पुल केसामने एक ऊँचे टीले पर लगा रखी थी। भारतीयों की गोलाबारी ने अंग्रेजी सेना के अगले भाग कोक्षतिग्रस्त कर दिया।
अंग्रेजों ने रणनीति बदलते हुए भारतीय सेना के बायें भाग पर जोरदार हमला बोल दिया। इसहमले के लिए अंग्रेजों ने 18 पौंड के तोपखाने, फील्ड बैट्री और घुड़सवार तोपखाने का प्रयोग किया। इससेक्रान्तिकारी सेना को पीछे हटना पड़ा और उसकी पाँच तोपे वही छूट गई। जैसे ही अंग्रेजी सेना इन तोपोंको कब्जे में लेने के लिए वहाँ पहुँची, वही छुपे एक भारतीय सिपाही ने बारूद में आग लगा दी, जिससे एकभयंकर विस्फोट में अंग्रेज सेनापति कै. एण्ड्रूज और 10 अंग्रेज सैनिक मारे गए। इस प्रकार इस वीरभारतीय ने अपने प्राणों की आहुति देकर अंग्रेजों से भी अपने साहस और देशभक्ति का लोहा मनवालिया। एक अंग्रेज अधिकारी ने लिखा था कि ”ऐसे लोगों से ही युद्ध का इतिहास चमत्कृत होता है!”[14]
अगले दिन भारतीयों ने दोपहर में अंग्रेजी सेना पर हमला बोल दिया यह बेहद गर्म दिन थाऔर अंग्रेज गर्मी से बेहाल हो रहे थे। भारतीयों ने हिंडन के निकट एक टीले से तोपों के गोलों की वर्षा करदी। अंग्रेजों ने जवाबी गोलाबारी की। 2 घंटे चली इस गोलाबारी में लै0 नैपियर और 60वीं रायफल्स के 11जवान मारे गए तथा बहुत से अंग्रेज घायल हो गए।15 अंग्रेज भारतीयों से लड़ते-2 पस्त हो गए,हालांकि अंग्रेज सेनापति जनरल विल्सन ने इसके लिए भयंकर गर्मी को दोषी माना। भारतीय भी एकअंग्रेज परस्त गांव को आग लगाकर सुरक्षित लौट गए।
1 जून 1851 को अंग्रेजों की मदद को गोरखा पलटन हिंडन पहुँच गई तिस पर भी अंग्रेजी सेनाआगे बढ़ने का साहस नहीं कर सकी और बागपत की तरफ मुड़ गई।16 इस प्रकार भारतीयों ने 30, 31मई 1857 को लड़े गए हिंडन के युद्ध में साहस और देशभक्ति की एक ऐसी कहानी लिख दी, जिसमें दोअंग्रेजी सेनाओं के ना मिलने देने के लक्ष्य को पूरा करते हुए, उन्होंने अंग्रेजी बहादुरी के दर्प को चूर-2 करदिया।
सन्दर्भ
1. ई0 बी0 जोशी, मेरठ डिस्ट्रिक्ट गजेटेयर, गवर्नमेन्ट प्रेस, 1963, पृष्ठ संख्या 53
2. शिव कुमार गोयल, ऐसे शुरू हुई मेरठ में क्रान्ति (लेख), दैनिक प्रभात, मेरठ, दिनांक 10 मई 2007।
3. वही।
4. वही ई0 बी0 जोशी।
5. एस0 ए0 ए0 रिजवी, फ्रीडम स्ट्रगल इन उत्तर प्रदेश, खण्ड टए लखनऊ, 1960, पृष्ठ सं0 45 पर मुंशीलक्ष्मण स्वरूप का बयान।
6. वही।
7. बिन्दु क्रमांक 221, नैरेटिव ऑफ इवेन्टस अटैन्डिग द आऊटब्रैक ऑफडिस्टरबैन्सिस एण्ड दरेस्टोरेशन ऑफ ऑथोरिटी इन डिस्ट्रिक्ट मेरठ 1857-58, राष्ट्रीय अभिलेखागार, दिल्ली।
8. वही ई0 बी0 जोशी।
9. वही ई0 बी0 जोशी।
10. उमेश त्यागी, 1857 की महाक्रान्ति में गाजियाबाद जनपद (लेख), दी जर्नल आफ मेरठ यूर्निवर्सिटीहिस्ट्री एलमनी, खण्ड 2006, पृष्ठ संख्या 311
11. वही बिन्दु क्रमांक 232, नैरेटिव इन डिस्ट्रक्ट मेरठ।
12. वही उमेश त्यागी
13. वही ई0 बी0 जोशी
14. वही उमेश त्यागी
15. विघ्नेष त्यागी, मेरठ के ऐतिहासिक क्रान्ति स्थल और घटनाएं (लेख), दैनिक जागरण, मेरठ,दिनांक 5 मई 2007
16. वही उमेश त्यागी
( Dr Sushil Bhati )
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