कवि---- मुकददम मिहिर प्रधान ।।
हिन्द ही नहीं बल्कि पूरे एशिया में
वीर गुर्जरो ने अपने अश्व दौडाये थे
काट काट कर शत्रुओ के सिर
माँ भारती के चरणो में चढाये थे ।।
हमारे पूर्वजो के साम्राज्य व शौर्य का
सूर्यास्त न होता था
कोई भी धरती पर ऐसा शत्रु न था
जो वीर गुर्जरो से परास्त न होता था
मातृभूमि की रक्षा के लिये
बिना किसी दूसरे विचार के
हर बार शत्रुओ से अपने वक्ष अडाये थे।।
जीत लिया था जग जिन अरबो ने
वे अरब आक्रमणकारी वीर गुर्जरो ने
दौडा दौडा कर बाहर भगाये थे।।
प्रतिशोध की प्रबलता थी
तभी तो कनिष्क महान ने चीन को हराने को
हिमालय पर भी घोडे चढाये थे ।।
बढाकर गुर्जरत्रा की सीमाओ को
पूरे उपमहाद्वीप में अपने झंडे गाडे थे
सदियो तक राष्ट्र रक्षक बने रहे
रणभूमि ही हमारे अखाडे थे
हमने ही चीनी व अरबो की छाती में
अपने तीर व भाले गडाये थे।।
हिन्द ही नहीं बल्कि पूरे एशिया में
वीर गुर्जरो ने अपने अश्व दौडाये थे ।।
इतिहास गवाह है हमारे पूर्वजो ने
सैकडो सालो तक शौर्य व साहस
बलिदान व पराक्रम के नये पाठ पढाये थे ।।
जुनैद के जिहादी जुनून को
नागभट्ट ने बडी निर्ममता से कुचल दिया था
रखकर गुर्जर साम्राज्य की नींव को
भारतवर्ष का भाग्य सदा को बदल दिया था
देकर करारी हार मंगोलो को
महाबली जोगराज सिहँ ने सन्यास लिया
छेडकर क्रान्ति क्रान्तिनायक धनसिहँ ने
दासता से मुक्ति का महान प्रयास किया
जिनके साम्राज्य का सूरज डूबता न था
उन्ही अंग्रेजो को हराकर वीर गुर्जरो ने
अपने खेतो में हल चलवाये थे ।।
करने शत्रुओ का संहार
गुर्जर सम्राट मिहिरभोज ने
भारत के बाहर कदम बढाये थे ।।
की राष्ट्र रक्षा, संस्कृति के रक्षक
तभी तो हमारे पूर्वज
आर्यावर्त के सम्राट कहलाये थे।
राम हमारे, कृष्ण के भी हम पालनहार
हम कुषाण, हम हूण, हम ही प्रतिहार ।।
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