आजादी के बाद जितनी अनदेखी गुर्जर शहीदो व क्रान्तिकारियो व राजाओ की हुई है ,उतनी अनदेखी भारत में किसी समाज की नहीं हुई। हर समाज ने अपने शहीदो व क्रान्तिकारियो के स्मारक बनवाये पर गुर्जर समाज ठगा सा रहा सदा। आज भी यह बदस्तूर जारी है। सत्तर पिचहत्तर सालो में हम अपने एक भी क्रान्तिवीर का स्मारक नहीं बनवा पाये। बडी कमी हमारी रही क्योंकि हमने प्रशासन व अपने सांसद व विधायक पर जोर ही नहीं डाला ,अगर डालते तो मजाल थी कि मांग पूरी ना करता। हमें खुद ही अपने शहीदो की गौरवगाथा का नहीं पता , उनके बलिदान का ठीक ठाक नहीं पता ।
भारत में ज्यादातर क्रान्तिकारियो को उनके गृह जनपदो मे, सम्मान हासिल है ,उनके स्मारक बने हैं पर गुर्जर शहीदो को सिरे से गायब कर रखा है।
अगर ऐसा ना होता तो आज दादरी में राव उमराव सिहँ भाटी व अन्य शहीदो का एक भव्य स्मारक होता । बुलंदशहर के काला आम चौक पर उनकी प्रतिमा लगी होती। हिंडन नदी पर एक हिंडन युद्ध विजय स्तंभ होता।
अगर ऐसी अनदेखी ना होती तो किला परिक्षितगढ में राव कदम सिहँ गुर्जर व उनके भाईयो व अन्य साथियो के नाम पर शहीद स्मारक बना होता। मेरठ में राव कदम सिहँ गुर्जर के नाम पर चौक व मूर्ति स्थापना हो जाती ।
अगर ऐसी घोर अनदेखी ना होती तो मेरठ में सन सत्तावन की क्रान्ति के जनक कोतवाल धन सिहँ गुर्जर का एक यादगार स्मारक बना होता व उनके नाम पर किसी संस्थान का नाम जरूर होता ।
ऐसा ही राजस्थान केसरी वीर विजय सिहँ पथिक जी के साथ हुआ , अजमेर में या बिजौलिया में विजय सिहँ पथिक जी का एक सुंदर सा स्मारक बनना चाहिये था पर आज तक नहीं बना। अजमेर में बनना चाहिये क्योंकि अजमेर उनकी कर्मभूमि रहा व यहीं से उन्होने अखबार निकाले।
उत्तराखंड कै महान क्रान्तिकारी राजा विजय सिहँ गुर्जर व सेनापति कल्याण सिहँ गुर्जर की भी घोर उपेक्षा होती रही है। कुंजा बहादुरपुर में एक स्मारक भले ही बन गया हो पर राजा विजय सिहँ गुर्जर की अभी तक वो पहचान नहीं बन पायी जिसके वे हकदार थे। वे भारत के अग्रणी क्रान्तिवीरो में थे जैसे बिरसा मुंडा । रूडकी में उनकी एक हाइवे पर प्रतिमा स्थापित होनी चाहिये साथ ही उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में सेनापति कल्याण सिहँ गुर्जर व राजा विजय सिहँ गुर्जर दोनो को सम्मान देते हुए उनके नाम पर दो चौक व मूर्ति स्मारक नुमा बननी चाहिये ।
ऐसे ही महान क्रान्तिकारी थे धौलपुर के कुदिन्ना के सूबा देवहँस कसाना जिन्हें बिल्कुल भुला दिया गया है , अब समय आ गया है कि धौलपुर में उनकी मूर्ति लगे व स्मारक बने ।
अगर आपको लगता है कि कोई नेता , देवता या मसीहा आगे आयेगा इन सबके लिये तो आप भारी भूल कर रहे हैं । कोई कुछ नहीं करता जब तक उस पर दबाव ना डाला जाये। इन शहीदो के वंशज तक चुपचाप बैठे रहेंगे व कुंवर लगा कर खुद को तीस मार खां समझते रहेंगे।
कोई सरकारी या प्रशासन कदम नहीं उठेगा इनके स्मारक या यादगार के लिये क्योंकि प्रशासन बहरा होता है, आप लोगो को आवाज उठानी चाहिये ।
यह हम पर निर्भर करता है कि हम वीर विजय सिहँ पथिक को राजस्थान का राजा राममोहन राय बना पाते हैं या नहीं क्योंकि बंगाल की तरह वीर विजय सिहँ पथिक राजस्थान के पुनर्जागरण के मसीहा हैं, किसान जागृति के जनक हैं व राजस्थान नामकरण के निर्माता ।
यह आप पर ही निर्भर करता है कि आप राजा विजय सिहँ गुर्जर को बिरसा मुंडा बना पाते हैं उत्तराखंड का या नहीं क्योंकि योगदान व संघर्ष तो बहुत बडा है उनका पर उस संघर्ष व बलिदान को कहने वाला कोई नहीं है।
यकीन मानिए यह आपकी सामूहिक जिम्मेदारी है कि बलिदानियो के बलिदान को आमजन से परिचित कराया जाये । पिछले कई दशको में जैसे आप और हम चुप्पी साधकर बैठे रहे ऐसे भी बैठ सकते हैं या फिर अपनी इन ऐतिहासिक मांगो को उठाकर इन वीर आत्माओ की कुर्बानी को इज्जत दिला सकते हैं ।दिनभर जय गुर्जर या वीर गुर्जर लिखने से कुछ नहीं होगा जरूरी है कि इकटठे होकर मांग करी जाये ।
मिहिर प्रधान ( Mihir Pradhan)
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