रविवार, 30 जुलाई 2017

कबीलाई संस्कृति हो लीजिए रूबरू

इसमें कोई दो राय नहीं है कि आधुनिक संस्कृति की नींव कबीलाई संस्कृति पर ही रखी गयी। हजारो साल पहले एशिया व यूरोप में अधिकांश कबीले खानाबदोश व चरवाहो के रूप में यहाँ से वहाँ घूमते रहे। ये कबीले योद्धा हुआ करते थे व एक से एक भीषण युद्ध लडा करते थे। दुनियाभर की आधुनिक जातियो का उदगम इनसे ही हुआ चाहे वे गोथ हों, स्लाव हो,तुर्क हो,मंगोल हों, पख्तून हो, गुर्जर हो, जाट हो राजपूत हो, उज्बेक हो,कजाक हो, किरगिज या तुर्कमेन हो, ताजिक हो, हूण गुर्जर हो सबके सब।
दुनिया के सभी लडाकू कबीलो में से ऐसा ही एक कबीला यूचियो ( गूजर,गुर्जर को चीनी भाषा में) का हूण कबीला था जिसने दुनिया के सारे ताकतवर व बडे बडे से साम्राज्य से टकराकर उसे हराया व कर भी वसूले।
हूणो ने फारस को, चीन को, पूरे मध्यएशिया को व यूरोप के रोमन साम्राज्य को हराया। इनके ही एक दल ने यूरोप जाकर अत्तिला हूण के नेतृत्व में हूण साम्राज्य खडा किया। दूसरे दल ने काफी बाद में मध्यएशिया में ही खजर साम्राज्य बनाया जो अरबो की बडी व खूंखार सेना को सैकडो सालो तक हराते रहे। खलीफाओ को घुटने टिकवा दिये।
ये सभी हूण गुर्जरो के कबीले थे। गुर्जर हिमालय के बैक्ट्रिया व तारिम बेसिन की घाटी में रहते थे व आधे गुर्जरत्रा यानी गुर्जरराष्ट्र जो कि आधुनिक गुजरात व राजस्थान का निवासी बताते हैं।
इन्हीं गुर्जरो की हूण शाखा ने वो पराक्रम व शौर्य दिखाया कि आज तक वैश्विक स्तर पर हूणो की धाक है व एक बहुत बडी पहचान है।
चीन ने अपनी महान दीवार का निर्माण हूण गुर्जरो के डर से व युद्ध से बचने को कराया। अन्दाजा लगाया जा सकता है कि हूण गुर्जर कितने बडे यौद्धा रहे होंगे। पूरा यूरोप व मध्य एशिया इनके पराक्रमो का गवाह रहा है।
हूणो के ही वंशज प्रतिहार गुर्जर भी थे जिन्होने भारत में सातवी सदी से लेकर दसवी सदी तक गुर्जर प्रतिहार साम्राज्य को बनाये रखा व अरबी आक्रमण को रोकते रहे। अदभुत है हमारे पूर्वजो की वीरता।

   मुकददम साहब ।।

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