भारत में मुगलकाल की स्थापत्य कला व गुप्तकाल की स्थापत्य कला को जितना संरक्षण व प्रदर्शन मिला है काश इतना संरक्षण गुर्जर प्रतिहार कालीन के मरूगुर्जर शैली में निर्मित्त मन्दिरो व मठो को मिला होता तो गुर्जर काल वाकई आमजन में लोकप्रिय हो उठता । आज भी एक बडा वर्ग गुर्जर साम्राज्य को बहुत ही कम जानता है या जानता ही नहीं ।
सवाल है क्यो?
क्योंकि बहुत से इतिहासकारो ने कभी नहीं चाहा कि इस साम्राज्य को गुप्तो या मौर्यो के बराबर जगह मिले।
सबसे बडा धोखा तो गुर्जरो के साथ गुर्जर काल को राजपूत युग लिखकर हुआ जबकि सच्चाई यह है कि राजपूत शब्द तब तक जन्मा ही नहीं था। इसे गुर्जर साम्राज्य व
गुर्जर काल लिखा जाना चाहिये।
जिस प्रकार अजन्ता एलोरा की गुफाओ को गुप्त काल व राष्ट्रकूटो की देन माना जाता है।
जिस प्रकार ताजमहल,फतेहपुर सीकरी के महल,लालकिला आदि को मुगलकाल की बेजोड स्थापत्य कला का दर्जाप्राप्त है।
जिस प्रकार सांची व सारनाथ के स्तूप मौर्य काल की प्रतिष्ठा को संजोये हुए हैं।
ठीक उसी प्रकार बटेश्वर के दौ सौ मन्दिर,मितावली का चौसठ योगिनी शिव मन्दिर,ग्वालियर का मिहिरभोज महल( मान सिहँ मन्दिर), तेली का मन्दिर,औसियां के मन्दिर,आभानेरी की चांद बावडी,जागेश्वर का शिव मन्दिर व भीमादेवी के मन्दिरो को भी भारत के पर्यटन मान चित्र पर जगह मिलनी चाहिये।
ये मन्दिर गुर्जर शासको के स्थापत्य कला का बेजोड व अदभुत कला के नमूने हैं। उत्कृष्ट उदाहरण हैं स्थापत्य कला के जिनका निर्माण मरू गुर्जर शैली में हुआ है।
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